81 बाल कविताओं का संग्रह- बोधनराम निषादराज


81 बाल कविताओं का संग्रह- बोधनराम निषादराज
 

बाल कविता संग्रह 2021

(छत्तीसगढ़ी मात्रिक रचना)

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(1) सरस्वती दाई


दाई    ओ     वरदान दे।

वीणा  के  सुर  तान दे।।


मँय  अड़हा  हँव शारदा,

मोला   थोकन   ज्ञान दे।


आखर  जोत  जलाय के

मोर  डहर  ओ  ध्यान दे।


जग मा नाम कमाय बर,

मोला  कुछ  पहिचान दे।


तोरे     चरन     पखारहूँ,

सेवक  ला ओ  मान दे।।

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(2) गुरु वंदना


पइँया   लागँव   हे  गुरुवर।

रद्दा   रेंगँव   अँगरी   धर।।


चरण - शरण मा आए हँव।

तुँहरे  गुन  ला   गाए  हँव।।


मँय  अड़हा  अज्ञानी  जी।

दौ  अशीष  वरदानी  जी।।


जग   के    तारनहारी  जी।

जावँव मँय  बलिहारी जी।।


पार   लगादौ   नइया  जी।

गुरुवर लाज  बचइया जी।।

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(3) हाथी दादा


पहन   पजामा   हाथी  दादा।

आमा  टोरय  मार  लबादा।।


आमा  हा   गिरगे   पानी मा।

मँगरा के  जी  रजधानी मा।।


मँगरा  धरके  सुग्घर  खावय।

हाथी दादा  बड़  चुचवावय।।


टप टप टप टप लार बहावय।

मँगरा पानी  दउड़  लगावय।।


हाथी  मँगरा  काहन  लागय।

भीख दया के माँगन लागय।।

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(4) गोलू भोलू


रोज  मुँदरहा  कुकरा  बोलय।

चिरई चुरगुन हा मुँह खोलय।।


लाली  लाली   दिखै  अगासा।

मन मा जागय सुग्घर आशा।।


दाई  उठ  के  बड़े  बिहनिया।

हउँला  बोहे  जावय पनिया।।


बाबू   गरुवा    ला   रेंगावय।

देख  बबा हा चहा  बनावय।।


गोलू   भोलू   चहा    बोर के।

खावँय बिस्कुट टोर- टोर के।।

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(5) नदी-पहाड़ खेल


आजा  पाछू   तँय  हा  बाबू।

तोरे मँय  नइ  आवँव काबू।।


नीचे   आबे    ऊपर   चघहूँ।

ऊपर   आबे   नीचे  भगहूँ।।


हाथ तोर मँय नइतो  आवँव।

आगू   पाछू   तोरे   जावँव।।


मोला  आँखी   झन  देखाबे।

ए  बाबू   तँय  हा  पछताबे।।


दउड़ दउड़ के तँय थक जाबे।

हाथ  कभू  नइ  मोला  पाबे।।

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(6) मँगसा


भुनुन - भुनुन  वो करै घात।

सुग्घर  गीत   बने  सुनात।।


मउका  पावय  रात - रात।।

कान - कान मा  करै बात।।


मँगसा  चाबय  हाथ  गोड़।

बबा ह भागय खाट छोड़।।


डारा   पाना   लाय    जोर।

डार   गोरसी   बार   टोर।। 


मँगसा   होवय   हलाकान।

मारय  थपरा   बबा  तान।।

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(7) स्कूल


दाई मोला सिलहट दे दे।

               स्कूल डहर ओ जाहूँ।

पढ़ लिख दाई ये दुनिया मा,

                सुग्घर नाम कमाहूँ।।


सैनिक बनके बइरी मन ला,

                बढ़िया मजा चखाहूँ,

बने गुरूजी बनके दाई,

                लइका घलो पढ़ाहूँ।।


नेता बनके देश धरम बर,

               मँय हा मर मिट जाहूँ।

संविधान मा सबके हित बर,

               सुग्घर नियम बनाहूँ।।

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(8) मछरी


रिमझिम रिमझिम पानी बरसय।

नरवा  तरिया  मन बड़ हरषय।।


मछरी  कूदन  लागय  छम-छम।

ढोल  बजाय  मेचका डम-डम।।


देख   टेंगना   झटपट    आवय।

साँवल   भुंडा   गीत  सुनावय।।


बनय   मोंगरी     दूल्हा   राजा।

कछुआ  पेट  बजावय  बाजा।।


सबो किसम के  मछरी आवँय।

लइकामन के  बड़ मन भावँय।।

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(9) चंदा मामा


चंदा  मामा  आजा  तँय घर।

खीर खवाहूँ माली भर-भर।।


मोरे  अँगना  तँय हा  आबे।

चंदैनी  ला   घलो   बुलाबे।।


खेल  खेलबो  रात-रात भर।

संगे  जम्मों  फुग्गा ला धर।।


बात   मानले   चंदा   मामा।

बने  खवाहूँ  गुरतुर  आमा।।


रद्दा    देखत    रहिहूँ   तोरे।

अँगना  मा   आजाबे  मोरे।।

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(10) दाई


दाई    ओ     दाई।

खाबोन   मिठाई।।


हाट   बाजार  मा।

सुग्घर तिहार मा।।


जाबो  ओ   मेला।

बड़  रेलम  पेला।।


धक्का ला खा के।

आबोन भगा के।।


पीबोन      मलाई।

दाई   ओ    दाई।।

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(11) पानी


पानी  रे  भइ    पानी।

एखर ले  जिनगानी।।


बिन पानी नइ  जंगल।

कइसे   होही  मंगल।।


आवव  सबो  बचाबो।

तभे अन्न  हम पाबो।।


जुरमिल पेड़  लगाबो।

शुद्ध   हवा  बगराबो।।


मानौ    मोरे   कहना।

जम्मों सुख मा रहना।।

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(12) तितली


तितली   रानी   तितली   रानी।

सुग्घर चाल चलन  औ बानी।।


किसम किसम के पाँख लगे हे।

मन मा  आशा  मोर   जगे हे।।


आबे    अँगना खुश हो जाहूँ।

तोर  संग  मा  मँय  उड़ जाहूँ।।


दुनिया    ला   मोला    देखाबे।

मोर  सहेली  तँय  बन  जाबे।।


तितली   रानी   तितली   रानी।

तँय तो   हावस  बने  सियानी।।

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(13) शिक्षा


गोंटा  पथरा  आवव   बिन लौ।

एक तीन अउ दो ला गिन लौ।।


गिनती  सुग्घर  लिखबो   भाई।

खुश हो   जाही   हमरो  दाई।।


वन - टू - थ्री अउ  फोर पढ़ाबो।

शिक्षा  के  सब  गुन  ला गाबो।।


जोड़  घटाना   करबो   सुग्घर।

गुणा  भाग  मन धरबो सुग्घर।।


खेल - खेल  मा   शिक्षा  पाबो।

पढ़े लिखे  मनखे  बन जाबो।।

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(14) मिट्ठू 


सुग्घर  चना  फोलथे  मिट्ठू।

गुरतुर  बने  बोलथे  मिट्ठू।।


हरियर  पाँखी  वाले  मिट्ठू।

लाली मिरच सुहाथे मिट्ठू।।


चोंच फभै चुक लाली मिट्ठू।

लगथे गोठ निराली  मिट्ठू।।


लइका सँग  इतराथे  मिट्ठू।

बइठ भात ला खाथे मिट्ठू।।


मिट्ठू बड़  चिल्लाथे मिट्ठू।

सुख संदेश  बताथे  मिट्ठू।।

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(15) गरमी छुट्टी


खुशी  मनाबो  छुट्टी होगे।

बड़ इतराबो  छुट्टी होगे।।


सँगवारी मन  देखत होहीं,

मजा उड़ाबो  छुट्टी  होंगे।


ममा गाँव के सुरता आ गे,

जल्दी  जाबो  छुट्टी  होगे।


खेल खिलौना माढ़े देखव,

चलौ  सजाबो  छुट्टी होगे।


बाग  बगइचा  सुन्ना होही,

धूम  मचाबो  छुट्टी होगे।।

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(16) बाबू(लड़का)


बाबू   देखव    आवत हे।

कनिहा ला मटकावत हे।।


नान्हें नान्हें गोड़ उठावत,

दुन्नों   हाथ   झुलावत हे।


छुन्नुर छुन्नुर  पइरी  सुग्घर,

रेंगत    बने   बजावत हे।


बाबू के सुग्घर मुख देखव,

हाँसत  अउ  मुस्कावत हे।


लइकापन के हँसी ठिठोली,

सबके  मन  ला  भावत हे।

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(17) सिपाही


मँय भारत के वीर सिपाही,

                  मुटका हाथ उठाहूँ जी।

मोर देश के बइरी मन ला,

                 दुरिहा बने भगाहूँ जी।।


सरदी, गरमी अउ बरसा हो,

               जम्मों ला सह जाहूँ जी।

ये भुइयाँ के मान रखे बर,

               अपने प्रान गवाहूँ जी।।


मोला लइका तुम मत जानौ,

                बइरी ले लड़ जाहूँ जी।

देश धरम बर आगू आ के,

              पुरखा लाज बचाहूँ जी।।

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(18) मदारी


देख   मदारी  आय हे।

लाल  बेंदरा  लाय हे।।


घेंच     बँधाये    डोरी।

डंडा   के   बड़जोरी।।


नाच   बेंदरा    बोलय।

कनिहा सुग्घर डोलय।।


आँखी काजर आँजय।

बइठ नींद ला भाँजय।।


नोनी   बाबू    आवव।

जम्मों मजा  लुटावव।।

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(19) कउआ


कउआ बोलय काँव ले।

बाबू   आही    गाँव ले।।


बने    मिठाई   लानही।

मीठ  पपीता  चानही।।


चानी -  चानी बाँटबो।

दुनों हाथ ला चाँटबो।।


कचरा  जम्मों  मेलबो।

पाछू   ताहन  खेलबो।।


लइका मन के लोर मा।

बने खेलबो खोर मा।।

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(20) खेल


घानी      मूनी    घूमबो।

ये  भुइयाँ  ला   चूमबो।।


आवव  मिलके  खेलबो।

पित्तुल   पथरा  मेलबो।।


चक्का   डंडा  हाथ  मा।

चलौ  चलाबो साथ मा।।


फुगड़ी खो-खो ला भली।

चलौ  खेलबो  जी गली।।


बिल्लस  भौरा  खेल मा।

लइकामन  के  मेल मा।।

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(21) नोनी


खुल-खुल-खुल-खुल नोनी हाँसय।

फुदुक-फुदुक  गिर गजबे नाचय।।


छिन मा  रोवय  छिन मा  गावय।

मया  दिखावत  मन ला भावय।।


दाई    के   अँचरा   ला    धर के।

दउड़य  कोंटा - कोंटा    घर के।।


चिखला   माटी   अंग   सनावय।

अउ  घुलंड  के  खुशी  मनावय।।


नोनी      सुग्घर    रानी    लागय।

दाई   के   दुख   तुरते   भागय।।

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(22) करिया बादर


करिया - करिया  बादर  छाथे।

बादर  बड़   पानी   बरसाथे।।


हवा   गरेरा   सँग  मा   लाथे।

बिजुरी नाचत बड़ चमकाथे।।


गड़ - गड़ बाजा  खूब बजाथे।

छानी  परवा  ला   छलकाथे।।


ये हा  सबके   प्यास   बुझाथे।

बंजर  भुइयाँ   ला   हरियाथे।।


देख   मेचका   गीत    सुनाथे।

करिया  बादर  घुमरत  आथे।।

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(23) फूल मोंगरा


फूल   मोंगरा   गजरा।

काजर आँजँव बदरा।।


सुरुज  देव  के लाली।

लगथँव भोली भाली।।


गोंदा   पींयर   लुगरा।

बेनी  झूलय  फुँदरा।।


नाचे के  मन  भावय।

देख कोइली  गावय।।


आमा   के   अमराई।

मोर   मयारू   दाई।।

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(24) काम करौ


काम  करौ  जी  काम करौ।

ये  दुनिया  मा  नाम  करौ।।


आलस मा झन  जी रहना।

संदेशा  सब  ला   कहना।।


महिनत के फल हा मिलथे।

काँटा फूल  घलो  खिलथे।।


सत   के   रद्दा   पाँव  धरौ।

झगरा मा झन  लड़ौ मरौ।।


सरग   बरोबर    गाँव   रहै।

आमा   अमली   छाँव रहै।।

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(25) केवट काँदा


 केवट काँदा  देखव  खा के।

बढ़ गुरतुर होथे  उसना के।।


चूल्हा राखय  हड़िया  धर के।

थोकन पानी  काँदा  भर के।।


काट - काट के  पर्रा  भर धर।

लेवय खावय लइका मनभर।।


हाट    बजारी   मेला   जाथे।

जगह जगह मा बढ़ बेचाथे।।


लाली  सादा   केवट   काँदा।

बने लगाथे  भर - भर माँदा।।

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26) मैना


बइठ   खोंधरा    मैना   बोलय।

सबके हिय मा अमरित घोरय।।


बड़े बिहनिया उड़थे फर-फर।

दाना  खा के आथे झट  घर।।


जिनगी   के  वो  राग  सुनाथे।

बोली  गुरतुर  सब ला  भाथे।।


उड़थे    मैना    रानी    गावत।

रथे   डोंगरी   चारा   खावत।।


छत्तीसगढ़ी    चिरई    उज्जर।

मोरे   अँगना  आ तँय सुग्घर।।

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(27) आलू


सुनले   कालू   सुनले  मालू।

भरे  समोसा  खा ले  आलू।।


चिप्स बने  आलू  के खा ले।

आलूगुंडा    रोज    बनाले।।


चना संग  मा  सुग्घर  लगथे।

भूख घलो हा झट ले भगथे।।


आलू भजिया मन ललचाथे।

देखत  मुँह  मा पानी आथे।।


आलू के जी  गुन  बढ़ भारी।

आवव खालव जी सँगवारी।।

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(28) गुपचुप


मेला  - ठेला   मा     बेचाथे।

लइकामन के मन ला भाथे।।


अमली  पानी  झोर  बनाथे।

आलू  चटनी  संग  मिठाथे।।


गोल-गोल ये  सुग्घर फभथे।

देखब मा जी  लार टपकथे।।


बने   मसाला   डारे   रहिथे।

रेंगइया मन  ला  वो कहिथे।।


गुपचुप  वाले  आ गे आवव।

बने  गपागप  लेवव खावव।।

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(29) कन्हैया बनहूँ


महूँ  कन्हैया  बनहूँ मइया।

देदे मोला तँय  बाँसुरिया।।


जमुना  घाट  तीर मा जाहूँ।

बने बाँसुरी  बइठ  बजाहूँ।।


अउ कदम्ब के पेड़ लुकाहूँ।

गोपी मन  के  चीर चुराहूँ।।


घर घर जा के माखन खाहूँ।

राधा राधा  मँय  चिल्लाहूँ।।


गइया  पाछू  बन  मा  जाहूँ।

ग्वाल बाल सँग रास रचाहूँ।।

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(30) सड़क सुरक्षा


सड़क सुरक्षा ला अपनावव।

डेरी   डहर   होके  जावव।।


साव  चेत   रेंगव  सँगवारी।

मोटर  गाड़ी  चलथे  भारी।।


आगू - आगू  पहिली देखव।

सड़क पार कर संगी लेवव।।


बाइक वाले सुनलौ मनभर।

हेलमेट अपनावव तन बर।।


चौराहा मा   सिगनल रहिथे।

देख ताक के चलना कहिथे।।

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(31) अक्ती बिहाव


देख पाख अब अक्ती आ गे।

बर बिहाव के लगन धरागे।।


पुतरी - पुतरा  ला सम्हराबो।

अँगना मा मड़वा गड़ियाबो।।


चुलमाटी  कोड़े  बर जाबो।

मँगरोहन  पर्रा  धर  आबो।।


आमा  पाना  मउर  बनाबो।

दुलहिन दूल्हा ला पहिराबो।।


बने  बराती  गड़वा  बाजा।

बइला गाड़ी  दूल्हा  राजा।।

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(32) चूल्हा


माटी   चूल्हा   सबो    नँदागे।

देखव  गैस   जमाना  आ गे।।


रोवत  आगी   कोन   जलावै।

तुरत  गैस  मा  भात  रँधावै।।


नइ   झंझट   माँजे   के  होवै।

अब साबुन मा  हड़िया धोवै।।


बिजली  के  इंडक्शन  आ गे।

हड़िया  छोड़व  कूकर छा गे।।


कहाँ  देखहू   रँधनी   कुरिया।

किचन बने हे सुनौ जहुँरिया।।

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(33) पेड़ लगावव


आवव  भाई  आगू  आवव।

बंजर भुइयाँ ला हरियावव।।


फूल जड़ी बूटी  मिल जाही।

शुद्ध  हवा  पानी  हा आही।।


एक  पेड़  के  कीमत  भारी।

कभू चलाहू  झन जी आरी।।


खेत खार अउ नरवा  तरिया।

झन छूँटय जी खाली परिया।।


हरियर - हरियर  पेड़ लगाहू।

तभे  छाँव  सुग्घर सब पाहू।।

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(34) खई खजानी


हाट  डहर  जी   जाबो।

चना   फुटेना    खाबो।।


गुलगुल भजिया सुग्घर।

उसना  काँदा  उज्जर।।


पाँच    रुपइया    लाई।

दे - दे   मोला     दाई।।


मुर्रा     लाड़ू      माढ़े।

लइका मन  सब ठाढ़े।।


ले  के  अमली   लाटा।

खाबो   करके   बाँटा।।

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(35) साहब बन जाहूँ


दाई    बने   पढ़ादे   मोला।

सुग्घर ज्ञान सिखादे मोला।।


साहब जइसे मँय बन जाहूँ।

दुनिया भर मा नाम कमाहूँ।।


ऊँच नीच  के  भेद  मिटाहूँ।

सुमता के मँय बात बताहूँ।।


गाँव-गाँव मा अलख जगाहूँ।

शिक्षा के मँय जोत जलाहूँ।।


कोनों अड़हा नइ रहि जाही।

सरग बरोबर सुख ला पाही।।

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(36) नोनी बोलत हे


पीपर   पाना  डोलत हे।

नोनी  सुग्घर  बोलत हे।।


खावत   पिकरी  मैना हे।

तरिया  जावत  कैना हे।।


मूड़    दोहरा    पानी हे।

नाचत   रेंगत   रानी हे।।


देखत  चाँद  लजावत हे।

बादर  मुँहूँ  लुकावत हे।।


पइरी   बने   बजावत हे।

मुचमुच ले मुस्कावत हे।।

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(37) नोनी बाबू


बाबू छम - छम नाचत हे।

नोनी खुल-खुल हाँसत हे।।


कहिनी   काहत  दाई हे।

बड़ मुस्कावत  भाई हे।।


एक हाथ  मा  झोला हे।

मोर बबा बड़ भोला हे।।


लाए  खई   खजानी हे।

देखव आनी - बानी हे।।


नोनी   बाबू   आवत हे।

ताली बबा बजावत हे।।

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(38) पताल


गोल-गोल अउ लाल-लाल।

दिखथे  सुग्घर  ये पताल।।


बिन एखर नइ बनय साग।

खाथे  तेखर   जगै  भाग।।


चटनी मा बड़  मजा आय।

बोरे   बासी   संग  भाय।।


अउ पताल के  कढ़ी झोर।

सुन   बोहाथे   लार  मोर।।


कच्चा खा ले  तँय पताल।

हो जाबे चुक लाल-लाल।।

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(39) गिनती


सुनौ  एक  दू  अउ तीन।

बजै   सपेरा   के  बीन।।


चार  पाँच  अउ छै सात।

गुरतुर करलौ सब बात।।


आगू   आथे   जी आठ।

बने  अपन  राहै   ठाठ।। 


नौ दस अउ ग्यारह  बोल।

बोली मा अमरित घोल।।


बारह   तेरह   तँय  सोंच।

अपन  मूड़  दौना  खोंच।।

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(40) बिलई


म्याऊँ म्याऊँ  बोल के।

दूध दही ला खोल के।।


खाथे   मेंछा  तान  के।

उंडा  दे  थे  जान के।।


सुन्ना  घर  के  चोर  ये।

दे थे मरकी  फोर  ये।।


ताकत  रथे  दुवार ला।

भगै  कूद  मेयार  ला।।


करिया  रथे  सफेद ये।

मुसुवा   देते   खेद ये।।

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(41) कुकुर


होथे  घर   रखवार  ये।

करथे मया  दुलार ये।।


लइका मन के संग मा।

चघथे जम्मों अंग मा।।


आज्ञा  ला   ये  मानथे।

अपन बिरानी जानथे।।


धीरज धर के बइठ थे।

बइरी बर ये अइँठ थे।।


बासी पसिया खाय वो।

आगू  पाछू  जाय  वो।।

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(42) साफ सफाई


कचरा   के   निपटारा   करबो।

साफ   सफाई   पारा   करबो।।


आवौ   बहिनी   आवौ    भाई।

जम्मों  मिलके  करौ   सफाई।।


रोग   दोष   दुरिहा  हो   जाही।

घर मा जम्मों  सुख  हा आही।।


ये  भुइयाँ   के   भाग   सँवरही।

हरियाली  सब  डहर  बगरही।।


घाट - घठौंदा   नरवा    तरिया।

चुक चुक ले राहय जी परिया।।

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(43) माटी दीया


आवव बहिनी आवव।

माटी  दीया  लावव।।


कपसा  सुग्घर  बाती।

बरै   सँझौती  राती।।


भागै  सब  अँधियारी।

होवय घर उजियारी।।


आगू   चौरा   तुलसी।

बारव   दीया हुलसी।।


संझाकुन अउ बिहना।

रोज बारलव दियना।।

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(44) ममा गाँव


चलौ ममा के  गाँव मा।

बर पीपर के  छाँव मा।


तीरी   पासा    खेलबो।

आमा  अमली झेलबो।।


ममा  ददा   दाई  सबो।

बहिनी अउ भाई सबो।।


सुरता  मोला   आतहे।

बइला  गाड़ी  भातहे।।


बाबू   गाड़ी   साजही।

बइला घुँघरू बाजही।।

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(45) डॉक्टर


डॉक्टर   बाबू  आही।

झट ले सुजी लगाही।।


झन  तँय  रोबे  नोनी।

चपके  रहिबे  पोनी।।


सिरतो नहीं जनावय।

थोकुन बने पिरावय।।


दू ठन  दी  ही  गोली।

खाबे  नोनी   भोली।।


बीमारी   भग   जाही।

तभे मजा  हा  आही।।

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(46) कलिन्दर


बाहिर हरियर भितरी लाली।

दिखथे सुग्घर रूप निराली।।


गुरतुर  मिट्ठा   रसा  भरे जी।

लेवइया  मन  खूब खड़े जी।।


बेचय  बने  कलिन्दर  चानी।

आथे  देखत  मुँह मा पानी।।


गरमी  दिन  मा  बड़ बेचाथे।

खाय-खाय के मन हा भाथे।।


भूखे  प्यासे  मनखे मन बर।

बड़ उपयोगी रथे कलिन्दर।।

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(47) पुरा पानी (बाढ़)


बाढ़े    नरवा    पानी।

झन  करबे  नादानी।।


बइहा कस वो घुनडत।

आथे गउकी उनडत।।


तँय हा  बोहा   जाबे।

जम्मों सुधी  भुलाबे।।


सुनले   मोरे   कहना।

साव चेत  मा  रहना।।


ठठ्ठा ला  झन  करबे।

मोर बात  ला  धरबे।।

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(48) गुस्सा ला छोड़ दे


खाबो  चना  फोल के।

बोली  मीठ  बोल के।।


पीपर   तरी   छाँव मा।

बइठब  बने  ठाँव मा।।


दाई    गाँव    जान  दे।

बाबू   ला   मनान  दे।।


लाबो   दही   जोर  के।

पी बो सब चिभोर के।।


जम्मों   मया   घोर दे।

गुस्सा   बने   छोड़ दे।।

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(49) रोटी पिसान के


गेहूँ  खेत   किसान के।

रोटी बनय पिसान के।।


खाथँव मँय हा तान के।

पूड़ी  चटनी  सान के।।


बनय  अँगाकर  रोटहा।

खाथँव मँय हा मोटहा।।


गजब सुहाथे खाय मा।

लगथे  देर  बनाय मा।।

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(50)  बम भोला


भोला   हे   बम  भोला।

राखर   चुपरे    चोला।।


नांगसाँप     के   माला।

दिखथे बड़ बिकराला।।


चंदा    मूड़ी     साजय।

डमडम डमरू बाजय।।


जटा    बिराजे    गंगा।

नाचय   हो  के  चंगा।।


नंदी    बइला     धारी।

भुतहा   के  सँगवारी।।

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(51) दूध मलाई


दाई    ओ    ए    दाई।

दे - दे   दूध    मलाई।।


खा के  मँय   तिरियाहूँ।

अउ दुरिहा भग जाहूँ।।


तोर  तीर  नइ  आवँव।

नइ ओ फेर सतावँव।।


लइका मन सँग पढ़हूँ।

जिनगी अपने  गढ़हूँ।।


पढ़ लिख नाम कमाहूँ।

दुनिया   ला   देखाहूँ।।

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(52) केरा(केला)


केरा    बारी    जाबो।

सुग्घर  केरा   खाबो।।


हरियर   पींयर  केरा।

लगे  खेत  मा  डेरा।।


बड़े - बड़े  जी पाना।

पान बिछाके खाना।।


बनै   साग  तरकारी।

राँधव  खावव बारी।।


केरा  छइँहा  खेलव।

पाँच रुपइया लेलव।।

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(53) मिरचा(मिर्च)


जाबो   मिरचा  बारी।

बबा  संग  सँगवारी।।


रखवारी  जी   करबो।

टोर - टोर के  धरबो।।


हरियर मिरचा काली।

पक के  होते  लाली।।


लइका   ला   रोवाथे।

भाजी  संग  सुहाथे।।


लगथे   ओरी - ओरी।

फरथे  कोरी - कोरी।।

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(54) मोबाइल


मोबाइल   हा    आ गे।

सबके  सपना   जागे।।


टन-टन घण्टी  बाजय।

मुन्ना  भइया  जागय।।


उठ के  बड़े बिहनिया।

बात करै बड़ मुनिया।।


बड़े   काम   के   होथे।

देखत  लइका   सोथे।।


ये तो  ज्ञान   खजाना।

आ गे   नेट   जमाना।।

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(55) चिरई झाँकय


चिरई   झाँकय   खोंधरा।

बखरी   बारी    जोंधरा।।


दाना - दाना   फोल  के।

डारा   पाना   खोल के।।


खाहूँ   चुन  चुन   चुर्र ले।

उड़  जाहूँ  मँय  फुर्र ले।।


चिरई   रानी   सोंच   थे।

अपन पाँख ला पोंछ थे।।


उड़हूँ आज  अगास मा।

घुमे फिरे  के आस मा।।

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(56) गेड़ी


गेड़ी   चघबो    बाँस  के।

खेल   खेलबो   हाँस के।।


पउवा   सुग्घर   साज के।

रुच-रुच  होवै  बाज के।।


सवनाही    त्यौहार   मा।

सजै   हरेली   बार  मा।।


रेंगय  अँगना   खोर  मा।

लइका मन हा जोर मा।।


नाचय  जम्मों  संग  मा।

खुशी  समावै  अंग मा।।

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(57) बाजा बाजय


बाजा बाजय  ढम-ढम।

गोलू नाचय छम-छम।।


पहिरे  सुग्घर   झबला।

बने  बजावय  तबला।।


देखव  हाँसन   लागय।

धरे   मँजीरा   भागय।।


गोड़    बँधाए   घुँघरू।

देखत   हावय  सुंदरू।।


कनिहा ला  मटकावय।

दउड़ दउड़ मुस्कावय।।

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(58) डोकरी


एक   गाँव  के   डोकरी।

रखे  एकठन   बोकरी।।


जाय    चरावै    डोंगरी।

ध रे हाथ  मा   पोंगरी।।


बने   बजावै   जोर  मा।

चरै  बोकरी   लोर मा।।


शेर एक दिन खाय बर।

आइस हे डरुहाय बर।।


टेकिस  लाठी  डोकरी।

शेर भागगिस  डोंगरी।।

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(59) गदहा


चीं पो - चीं पो   बड़  चिल्लाथे।

सील  लोड़हा   घलो   लदाथे।।


काम  गजब  के  ये  हा  करथे।

तभो  नाँव  गदहा  सब  धरथे।।


मार   घलो   जी  गजबे   खाथे।

तभो   बिचारा   रोज   कमाथे।।


बोझ   लादथे   धोबी     कपड़ा।

अउ   देथे   जी  भारी   थपड़ा।।


अइसन   गदहापन  ला   छोड़ौ।

महिनत खातिर मन ला जोड़ौ।।

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(60) बेंदरा


कूद - कूद के खपरा फोरै।

छानी परवा ला सब टोरै।।


करै  उजारी  बखरी  बारी।

दल के दल आवै सँगवारी।


जय हनुमंता ए ला कहिथे।

तेखर सेती मनखे सहीथे।।


लइका देखत दाँत निपोरै।

चना फुटेना मुँह मा जोरै।। 


बइठ पेड़ मा पाना खावै।

सुन्ना देखात घर मा आवै।।

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(61) पढ़ौ लिखौ


बात  सुनौ  सब  कान लगा के।

पढ़ो लिखौ सब ध्यान लगा के।।


अक्षर - अक्षर ला सब जोड़ौ।

पढ़े-लिखे बर मन ला मोड़ौ।। 


खेल-खेल मा गिनती गिन लौ। 

पट्टी मा अक्षर ला लिख लौ।।


अ, आ, इ, ई   ला  पहिचानौ। 

क, ख, ग, घ, ला सब जानौ।। 


शिक्षित हो जग नाम कमावौ। 

जिनगी अपने सफल बनावौ।I

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(62) झुलना


झुलना    अमाडार   मा।

अमरइया के  खार मा।। 


आना   भइया  झूल तँय।

अउ झन जाबे भूल तँय।। 


सँगवारी    मन  आय हे। 

जम्मोंझन    हरषाय हे।। 


हॅंसत-हॅंसत  मन झूमथे। 

ये   भुइयाँ   ला  चूमथे।।


पुरवइया    सुग्घर   बहै।

मन हा वश मा नइ रहै।।

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(63) बरफ के गोला


खाबो   गोला  खाबो गोला।

आजा भोलू आजा भोला।।


देखव   बेचइया   हा आये।

बने बरफ  के गोला लाये।।


रंग-रंग   के  गोला   धरके।

दै गिलास मा वो भर भरके।।


लाली  पीला   नीला  भावै।

लइका जम्मों हे सकलावै।।


चाँट-चाँट के मिलके खावै।

नइ खावै ते  लार  बोहावै।।

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(64)  नाना नानी


इल्लिग बिल्लिग बोहै पानी।

देख बिहनिया लावै नानी।।


पानी   लावै   चाय   बनावै।

नहीं  थोरको  वो  सुरतावै।।


नानी चाय  पियावै  घर मा।

नाना नाचय ओखर डर मा।।


नाना  हावै  बने   कमइया।

नानी तो बड़ मया करइया।।


जाबो  नाना  नानी  के घर।

खाबो रोटी चाय पेट भर ।।

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(65) भाजी 


भाजी     वाले    आथे।

सुग्घर   सब्जी   लाथे।।


चौलाई      तिनपनिया।

पाला अउ चुनचुनिया।।


सरसो   चना   अमारी।

तिवरा अउ गुँझियारी।।


गुमी   चनौरी   भथुवा।

बोहार   चेंच    पटुवा।।


कई  किसम के भाजी।

खाए  बर  मँय  राजी।।

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(66) कुकरा(मुर्गा)


बड़े मुँदरहा  कुकरा बासय।

सुरुज देवता मुचले हाँसय।।


कुकरुस कूँ बोली मन भाथे।

बड़े बिहनिया  इही जगाथे।।


देथे    संदेशा    जागे     के।

काम  बुता  डाहर भागे के।।


ये  कुकरा   सँगवारी   होथे।

संगे    उठथे    संगे   सोथे।।


कई  किसम  के  चारा चरथे।

अपन पेट कनकी मा भरथे।।

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(67) बुध हा झरगे


राँधेंव  भात  गिल्ला  होगे।

कनिहा  मोरे ढिल्ला होगे।।


अब का होही सोंचत हावौं।

बइठे  आँसू  पोंछत हावौं।।


बड़  खरतरहिन  दाई मोरे।

देखत  हावौं  दाँत निपोरे।।


मोर ददा गुस्सा बड़ करथे।

काय बताहूँ जिवरा डरथे।।


खेल-खेल मा  आगी बरगे।

जम्मों बुध हा मोरे  झरगे।।

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(68) बरसात


हवा चलय जी सर-सर-सर-सर।

पानी बरसय झर-झर-झर-झर।।


देख   चिरइया   गावन  लागय।

भुइयाँ  हा  मनभावन  लागय।।


करय    मेचका  टर-टर-टर-टर।

बादर  गरजय घर-घर-घर-घर।।


मन मा  आशा   जागत  हावय।

नोनी   बाबू   हाँसत    हावय।।


कागज   के   डोंगा  ला  धर के।

गली-खोर  खेलय  मन भर के।।

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(69) रेल गाड़ी


इंजन   बनबे   तहूँ    रेल के।

बने  चलाहूँ  खेल - खेल के।।


गाड़ी  जाही  देखौ छुक-छुक।

मनखे कइही आगू रुक-रुक।।


मजा   खेल मा  आही  भारी।

स्टेशन मा  जी चघय सवारी।।


हरियर   झंडा  गाड़ी  रुकही।

इहाँ  जवइया मन हा पुछ्ही।।


कोन  डहर  बाबू  तँय  जाबे।

मोला   गाड़ी   मा   बइठाबे।।

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(70) साँप वाले


आय साँप  वाले  ये भइया।

जुरे   हवै भारी   देखइया।।


रंग - रंग  के    साँप   धरे हे।

ओखर झपली सबो भरे हे।।


बने   नाच के  बीन  बजाथे।

नोट पाँच के  रुपिया  पाथे।।


लइका  जम्मों  घेरा   करके।

खड़े  देखथे  कनिहा धरके।।


नाँग साँप हा फन  ला काढ़े।

मार   कुंडली  देखव  ठाढ़े।।

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(71) जाड़ा


जाड़  जनावय  गुरतुर-गुरतुर।

झोंका मारय  सुरसुर-सुरसुर।।


धरे  गोरसी   बबा   बिहनिया।

आगी तापय सँग ननकुनिया।।


चहा   डोकरी   दाई    लावय।

बबा  डबलरोटी  ला  खावय।।


लइका  जम्मों   बइठे   हावय।

गीत  कहानी  बबा  सुनावय।।


ओढ़े   कमरा  बइठ   मचोली।

खेलय लइका करत ठिठोली।।

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(72) आवौ पढ़लौ


पुस्तक कापी सिलहट धरलौ।

सुख पाये बर कारज करलौ।।


आवौ भइया मिलके पढ़लौ।।

सुग्घर अपने जिनगी गढ़लौ।।


खेल - खेल  के  संग   पढ़ाई।

गीत - कहानी  सुन लौ भाई।।


नहाखोर  के   बासी   खावौ।

स्कूल  पढ़ेबर  जाबो आवौ।।


टन - टन  घंटी  बाजत   हावै।

संगी   सबो   बुलावत   हावै।।

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(73) कम्प्यूटर


नवा डगर बर  मुँह ला मोड़ौ।

कम्प्यूटर  सँग  नाता जोड़ौ।।


आए  हे   कम्प्यूटर  जब  ले।

खेल इही मा बड़का सब ले।।


खेल - खेल  मा  होय  पढ़ाई।

डिजिटल बनगे लोग लुगाई।।


काम  होय सब बइठे घर मा।

संदेशा  मिलथे  छिनभर मा।।


सीखव झन  हो  आनाकानी।

एखर बिन बिरथा जिनगानी।।

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(74) सुग्घर चिरइया


नील   अगासा    उड़ै   चिरइया।

मन मा   आशा   करै  चिरइया।।


किँजर-किँजर के घर मा आवय।

दाना    पानी     पेट   जुड़ावय।।


बीच   खोंधरा   बइठ   निहारय।

अँगना  फुदकत   धुर्रा  झारय।।


सोन   चिरइया    जइसे   पाँखी।

जुगुम-जुगुम बड़ सुग्घर आँखी।।


तुलसी    चौरा   के   ऊपर  मा।

चहकत  रहिथे  परवा  भर मा।।

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(75) क्रिकेटर बनहूँ


एक  चीज  माँगत  हँव  दाई।

पाँव  परत   हँव  मोरे  माई।।


मोला  बैट - स्तम्भ तँय दे दे।

पूक घलो  इकठन ओ ले दे।।


रोज  खेल   मँय  करहूँ  दाई।

मिलके   संगी   साथी  भाई।।


महूँ  क्रिकेटर बन  दिखलाहूँ।

कपिलदेव कस नाम कमाहूँ।।


सपना  ला  मँय   पूरा  करहूँ।

खुशी जीत के  झोली  भरहूँ।।

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(76) चाँटी


चाँटी चबरी  करिया  भुरुवा ।

तेलासी  रहिथे  सब  घुरुवा।।


तुरतुर - तुरतुर   चाँटी   रेंगय।

लइका जम्मों मिलके देखय।।


बिना थके  ये  कारज  करथे।

एक  बछर  बर  दाना धरथे।।


आगू    पाछू  जावत   रहिथे।

मुँहूँ जोर कुछ काहत रहिथे।।


रात दिवस  के काम करइया।

चाँटी मन ले  सीखव भइया।।

~~~~~~~~~~~~~~~~~

(77)  भोला भाला


लइका   भोला   भाला   होथे।

छिन मा हँसथे छिन मा रोथे।।


झटकुन  मान घलो  ये  जाथे।

बिफड़े मा फिर बड़ा सताथे।।


लइका  तो  भगवान   बरोबर।

इँखरे  मन हा  होथे  उज्जर।।


झूठ कपट बिलकुल नइ जानै।

सुग्घर  मन  ले  अपने   मानै।।


अइसे   होथे   लइका   बच्चा।

भोला  भाला मन के  सच्चा।।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~

(78)  खुशियाँ आही


खुशियाँ  आही  खुशियाँ  आही।

इक दिन दुख दुरिहा  हो जाही।।


फूल   सहीं  हाँसत  रहि  जाबो।

सुग्घर  जिनगी  सबो  बिताबो।।


मन  के  सब  दुर्गुण  ला  टारव।

झूट  कपट  जम्मों  ला  झारव।।


चिंता  मा  तन  जर  बर   जाथे।

अलप काल  फिर  मरना  आथे।


शुभ बिचार  मन घर कर जाही।

दउड़त देखव  खुशियाँ  आही।।

~~~~~~~~~~~~~~~~~

(79) देवारी


साफ  सफाई   सबो  दुवार।

हँसी खुशी के  इही तिहार।।


जगमग   देवारी  हा  आय।

लक्ष्मी माता  धन बरसाय।।


घर-घर दीया  सबो जलाय।

फोर फटाका बड़ हरषाय।।


मीठ बतासा  नरियर फोर।

बाँटय  लाई   दोना  जोर।।


चंदा कस  छुरछुरी अँजोर।

लइका खुशी मनावय खोर।।

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(80) रक्षा बंधन


सावन  पुन्नी   महिना  सुग्घर।

भाई  जाथे  बहिनी  के  घर।।


अमर  मया  बहिनी  भाई के।

यम  राजा  यमुना   माई के।।


बहिनी   बने   सजाथे   थारी।

हाथ   बाँधथे   राखी  प्यारी।।


कुमकुम  टीका  माथा सुग्घर।

भइया ऋणी रथे बहिनी बर।।


रसगुल्ला  मुँह  डार  खवाथे।

भाई  बहिनी  बड़   हरषाथे।।

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(81) मुसुवा बिलाई


नाच  बिलाई   नाच रे।

पइसा  देहूँ    पाँच रे।।


मुसुवा बिला उजार दे।

जा के  वोला  मार दे।।


धर के  डंडा  हाथ मा।

संगीमन सँग साथ मा।।


म्याऊँ - म्याऊँ बोलथे।

बिला द्वार ला खोलथे।।


मुसुवा  देवय  काट जी।

भगै  बिलाई  बाट जी।।

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Comments

  1. बहुत सुन्दर गुरुदेव जी

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  2. बेहतरीन बाल रचना संग्रह सर जी। सरल शब्दावली मा ग्रामीण आंचलिक परिवेश के रहन-सहन ल चित्रित करत गजब संकलन 🙏🙏🙏🙏

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