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Showing posts from June, 2022

दू ठन कविता-चोवाराम वर्मा बादल -----------

 दू ठन कविता-चोवाराम वर्मा बादल ----------- 1 पिताजी ------------ दया-मया बड़ करने वाला। मन मा हिम्मत भरने वाला। सब ले बड़का देव पिताजी। सुख के जब्बर नेव पिताजी। अनुशासन वो सदा सिखाथे। डाँट-डपट निक राह चलाथे।  कृपा करइया संत पिताजी।   दुख पीरा के अंत पिताजी। सुग्घर करथे लालन-पालन। देथे होम अपन जोरे धन। खुद अभाव मा रहै पिताजी। खुशी रहौ सब कहै पिताजी। बखत परे दाई बन जाथे। संगी-साथी ,भाई बन जाथे। पूरा करथे चाह पिताजी।  रोज करै परवाह पिताजी।  जेला दाई कहिथे स्वामी। सचमुच मा वो अन्तर्यामी। देथे सब ला मान पिताजी। घर-दुवार के शान पिताजी। 2 पीठ चढ़ाथे --------------- घोड़ा जइसे पीठ चढ़ाथे। ड्यूटी ले आके खेलाथे।  घात मयारू आय पिताजी। मोला अब्बड़ भाय पिताजी। सेव, जलेबी, बिस्कुट लाथे। मोला अपने हाथ खवाथे। गुपचुप ,चाट खवाय पिताजी। नइतो  टुहुँ देखाय पिताजी। बोल-बोल इमला लिखवाथे। गुरुजी कस कविता रटवाथे। कठिन गणित समझाय पिताजी। तभ्भो नइ गुस्साय पिताजी। ड्रेस नवा सिलवाके देथे। पुस्तक, कापी ,पेंसिल लेथे। सइकिल मा बइठाय पिताजी। स्कूल मोला पँहुचाय-पिताजी। चोवा राम 'बादल' हथबंद,छत्तीसगढ़

बाल कविता-

 बाल कविता- चल संगी चल, आमा टोरे ल जाबो।  खुरहोरी कस मिठाथे,  छक्कत ले खाबो।  चल संगी चल,  आमा टोरे ल जाबो।  दिनमान जाबे त  रखवार हर कुदाथे।  एक्को ठन देवय नहीं, अकेल्ला खाथे।  चुपेचुप रात कन, टोर के हम लाबो।  चल संगी चल, आमा टोरे ल जाबो।   घुघवा के आँखी  घरखुसरा कस चाल।  चमगेदरी कस झुलबो, करबो बारा हाल।  खावत ले खा के, झोला भर लाबो।   चल संगी चल  आमा टोरे ल जाबो।  दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

बंद होय अब पेड़ कटाई- बाल कविता*

 *बंद होय अब पेड़ कटाई- बाल कविता* रुखराई  हा  देथे  छँइयाँ। हरियाथे ये सगरो भुँइयाँ।। बादर, बरखा इही बलाथे। धरती ऊपर जल बरसाथे।। लकड़ी-फाटा रुखुवा बनथे। कुर्सी-टेबल  सुग्घर  तनथे।। फुरहुर हवा, साँस सुखदाई। मिलथे कागज, तेल, दवाई।। रुखराई  ले  पनकै  जंगल। सबके जीवन कर दै मंगल।। पेड़ बिना हे मुश्किल जीवन। खड़े रथें धरके ऑक्सीजन।। तभो पेड़ मा चलथे आरी। कोन बताही, का लाचारी ?? बंद होय अब पेड़ कटाई। नइ ते नित बढ़ही करलाई।। कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा छत्तीसगढ़

बाल कविता-हाथी के सूँड़

 हाथी के सूँड़   लम्बा सूँड़ लमाये हाथी,  धमरस-धमरस आथे।  हाथ बरोबर सूँड़ म धरके,  डारा पाना खाथे।  इही सूँड़ हर नाक तको ये,  स्वांसा अपन चलाथे।  पानी भर के अंग-अंग मा,  मार फुहार नहाथे।  पूछ कभू झन येखर ताकत, काम बड़े कर जाथे।  बड़े-बड़े रुखराई मन ला,  सूँड़ लपेट उठाथे। खाना खाथे हाथी मनभर,  इही सूँड़ मा धरके।   मनभर प्यास बुझावत रहिथे,  खींच सूँड़ भर भरके। दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

पेड़ लगावय (शंकर छंद)

 पेड़ लगावय (शंकर छंद) चुन्नी मुन्नी सोना बबलू, होय झट तैयार। धरके रापा कुदरी झउहाँ,  जाय तरिया पार।। जुरमिल पेड़ लगावय बढ़िया,  घेर परिया मेड़। साजा सरई आमा पीपर, नीम अउ बर पेड़।। करथे सब्बो मिल सँगवारी,  आज वादा एक। हमन जतन करबो रुखवा के, काम हावय नेक।। काँटव झन ये रुख राई ला,  देत सुख के छाँव। आवव अलख जगाबो मिलके,  शहर जम्मो गाँव।। -हेमलाल साहू छंद साधक सत्र-1 ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

पर्यावरण दिवस विशेष *बाल कविता--- पेड़ लगाबो*

 पर्यावरण दिवस विशेष *बाल कविता--- पेड़ लगाबो* खेत- खार मा पेड़ लगावव । धरती ला जी सरग बनावव ।। शुद्ध  हवा  शीतल  पुरवाई । रुख- राई  हे बड़ सुखदाई ।। जुरमिल पेड़ लगावव भइया । तीपत  हावय  धरती  मइया ।। पेड़  कभू झन  काटव भाई । जिनगी  के  होही  करलाई ।। आवव सब झन पेड़ लगाबो। जन-मानस ला बात बताबो ।। रुख-राई हा मन ला भावय । भुइयाँ मा हरियाली लावय ।। *मुकेश उइके "मयारू"* छंद साधक--सत्र 16 ग्राम-चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

03,,बालगीत गरजत घुमरत

बालगीत  गरजत घुमरत  गरजत घुमरत आवत बादर। पानी ला बरसावत बादर।  झरझर झरझर झिमिर झिमिर कर। जुड़हा लागे खोली घर भर।। नाचे कूदे लइका मनहा। देखत हाँसे बबा सियनहा। छपर छिपिर करके चिल्लावे। चिखला माते तभो नहावे।।  धरके नाँगर जोंती बइला।  धरे किसानिन पानी घइला। जावत खेती करे किसानी। जब जब आथे बरखा रानी।। टरर टर मेचका  नरियावे। झींगुर झीँ झीँ गाना गावे। छलकत हावे नदिया नरवा। चारा पागे हरहा गरवा।। सावन  राखी धरके  आगे। ये तिहार हा बड़ निक लागे। बहिनी भैया के घर जाथे। भैया राखी हाथ बँधाथे।। मुन्नू मोरो छोटे भाई।  लागे जइसे किसन कन्हाई । मँय बांधथँव राखी वोला। नाचे कूदे धरके मोला।। ---------------------------💐💐💐💐💐 बालगीत  होली होली आगे होली आगे। सोनू मोनू दउड़े भागे। भर पिचकारी मुनिया लाने। नाचत कूदत गाये  गाने।। हरियर पिंवरा रंग धरे हे। हुड़दँग बाजी सबो करे हे।देखव मुखड़ा होगे लाली। करिया रँग मा दिखथे काली।। नाचे बजा बजा के ताली। कोनो पीटत हावे थाली।  बबलू ड़फली धर के आगे। ठुमक ठुमक सब नाचन लागे।। एक बछर मा आथे होली। माथ लगाबो  सबके रोली। संगी खाबो चलो मिठाई। पीबो जी भर के ठंडाई।। ----------

पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य मा बाल कविता

 पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य मा बाल कविता  पर्यावरण बँचाबो। -------------------- पर्यावरण बँचाना हावय। सब ला पेंड़ लगाना हावय।। बिरछा हा सबके हितवा ये।  करिया बादर के मितवा ये।। जंगल-झाड़ी जेन उजारै। अपने पाँव कुल्हाड़ी मारै।। रुखुवा ला सैनिक कस जानौ। रक्षा करथे ये तय मानौ।।   ताल,नदी गंदा होवत हे।  जिनगी हा मंदा होवत हे।। होगे हवा निचट जहरीला। गड़त हवै छाती मा खीला।। चलौ अपन कर्तव्य निभाबो।  परिया भुँइया पेड़ लगाबो।।  पेड़ ------ परथे टँगिया रोथे पेड़। अब्बड़ हितवा होथे पेड़।। सहि लेथे वो अत्याचार। साधु सहीं करथे उपकार।। हरथे वायु प्रदूषण भार। आक्सीजन देथे भरमार।। पंछी मन के ये घर-द्वार। जीव-जंतु के पालनहार।। रुख-राई बिन मरे बिहान। छूट जही मनखे के प्रान।। करना होही साज-सम्हाल।  नइते आही सँउहे  काल।।  वायु-प्रदूषण ------------ वायु-प्रदूषण होवत हावय। धरती दाई रोवत हावय।। ढरक जथे वोकर आँसू हा, जब-जब कोनो पेड़ कटावय। आसमान मा जहर भरे हे, कइसे शुद्ध हवा मिल पावय। बाइक, मोटर, कार अबड़ हे, धुँआ उछर के ताप बढ़ावय। पैदल चलना छोड़िस मनखे, सइकिल मा नइ आवय-जावय। बड़भागी वोला तो जानौ, मेड़-पार जे पेड़ लगावय। चोवा

रामकुमार चन्द्रवंसी के3 बाल कविता

 (बाल कविता)   बबा गये हावे जंगल बबा गये हावे जंगल, लही हमर बर तेंदू फल, गुदा गुदा ला हम खाबो, बीजा ला जी अलगाबो।। बीजा ला फेर लगाके, पानी दे बड़े बढ़ा के, फिर से हम तेंदू पाबो, सब झन हम मिलके खाबो।। तेंदू ले लकड़ी पाबो, कुर्सी अउ बेंच बनाबो, निक सनमाइका लगाबो, हम पहुना ला बइठाबो।। गर्मी मा डारा छाबो, सुग्घर छइहाँ हम पाबो, गर्मी ला दूर भगाबो, जिनगी ला हाँस बिताबो।। राम कुमार चन्द्रवंशी बेलरगोंदी (छुरिया) जिला-राजनांदगाँव 9179798316     (2) (बाल कविता)  चलो खेलबो खेल चलो खेलबो जुरमिल खेल, बिन पटरी के चलही रेल। नइ लागे बिजली अउ तेल, चलही गाड़ी रेलम पेल।। मजा अही अड़बड़ ये खेल, सिग्नल पा के चलही रेल। रेल समय मा सुग्घर मेल, नइ होवय गाड़ी हर फेल।। बनही कोई टी टी एक, करही सबके टिकट ल चेक। बिना टिकट के जाही जेल, चलही छुक छुक गाड़ी रेल।। रइपुर,दिल्ली अउ भोपाल, जयपुर,रीवा,नैनीताल। जाही कोई हर करनाल, मुंबई सूरत अउ इम्फाल।। राम कुमार चन्द्रवंशी बेलरगोंदी (छुरिया) जिला-राजनांदगाँव      (3) (बाल-कविता)  शाला जाबो सदा समय के रख के ध्यान, शाला जाबो,पाबो ज्ञान, अपन बनाबो हम पहिचान, दुनिया करही नित सनमान।। होथ

पेंड़ ला गुस्सा आतिस

  पेंड़ ला गुस्सा आतिस  कहूँ पेंड़ ला गुस्सा आतिस,  अड़बड़ मजा चखातिस।  टँगिया धर जे पास फटकतिस,  ओला बहुत ठठातिस।   पेंड़ तरी बइठन नइ देतिस,  डारा मार भगातिस।  कहूँ चढ़े रुखुवा मा कोनो,  पेल ढपेल गिरातिस।    फुलुवा टोरन नइ दवँ कहिके,  काँटा बड़े उगातिस।  फर तक ला खावन नइ देतिस,  सरहा करके गिरातिस।  अपन जरी ला लम्बा करके,  गोड़ फँसा हपटातिस।  घर कुरिया ला टोर टार के,  नानी याद दिलातिस।  कहूँ पेंड़ ला गुस्सा आतिस,  दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार  छत्तीसगढ़ 💐💐💐💐💐💐💐💐💐 दिलीप वर्मा : पेंड़ लगाबो  पेंड़ लगाना हवय जरूरी,  चल सब ला समझाबो।  धरती ला सिरजाये खातिर,  जुरमिल पेंड़ लगाबो।    सोनू धरके आबे राँपा,  मँय लानहूँ कुदारी।  मुनिया तँय झउहाँ धर लाबे,  गोलू तँय हर आरी।  कोड़ खान के गड्ढा करबो,  खातू डार मताबो।  पौधा ला रोपे के पहिली,  काँटा काट के लाबो।  जइसन दाई हमला पालिन,  तइसन ध्यान लगाबो।  जब पौधा हर पेंड़ बने तब,  फल मीठा हम पाबो।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

पेंड़ मन के बइठका

 पेंड़ मन के बइठका  रोज कटावत देख एक दिन,  पेंड़ सबो जुरियागे।  कइसे बाचन ये मनखे ले,  सबझन सोंचन लागे।  एक पेंड़ गुस्सा के कहिथे,  डारा मार भगाबो।  कहिस दूसरा नार बांधके, फाँसी जस लटकाबो।   तीसर बोलिस जहर घोर के,  फर ओमन ल खवाबो।  चउथा कहिथे जड़ी बूटी ले,   अवसध गुण ल हटाबो।  बुढ़वा रुखुवा सबके सुनके,  गूढ़ रहस्य बताइस।  परमारथ बर जनम लिए हन,  सबझन ला समझाइस।  जइसन जेहर काम करत हे,  तइसन फर वो पाही।  आज नही ता काली मनखे,  करनी ला पछताही। रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता*

 *बाल कविता* चलव संगी स्कूल जाबो पढ़े बर। नवा देश के नवा रद्दा ल गढ़े बर।। दाई-ददा मन दिनभर, खेत मा काम करथें। हम ला पढ़ाय लिखाय बर, रात-दिन जी घिलरथें।। चलत हावय बइला-नाँगर, तत्ता-तत्ता अर्र अर्र... नवा देश के नवा रद्दा गढ़ेबर।। चलव संगी पढ़-लिख के, हम देश ला साक्षर बनाबो। देश मा फइले अँधियारी ला, हमन सब दूरिहा भगाबो।। चलत हावय शिक्षा अभियान, गाँव-गाँव अउ शहर... नवा देश के नवा रद्दा गढ़ेबर।। देश में बाढ़े जनसंख्या ला, हम मिलके कम कराबो। "हम दो हमारे दो" के, नारा हमन जी लगाबो।। कोनों वकील डाक्टर बनबो,  कोनो पूलिस आफिसर.... नवा देश के नवा रद्दा गढ़ेबर।। राजकुमार निषाद "राज" छंद साधक-सत्र-16 बिरोदा, धमधा जिला दुर्ग

भालू राजा

 भालू राजा टोप मूड़ मा पहिरे भालू, आँखी मा चश्मा दमकाय। मटक-मटक के रेंगत हावय, आजू-बाजू देखत जाय।। का लेवँव मैं सोचत हावय,  भालू राजा पहुँच बजार। मदुरस देखय बड़ा मगन हो, लेवय खाये बर भरमार।। रचनाकार :-  जगदीश हीरा साहू (व्याख्याता) कड़ार (भाटापारा) बलौदाबाजार

बाल कविता ---बिजली*

  *बाल कविता ---बिजली* बिजली रानी बिजली रानी । बड़ सुग्घर हे तोर कहानी ।। तार- तार मा तँय हा भागे । गाँव- गाँव उजियारी आगे ।। तहीं चलाथस कूलर हीटर । राखय जम्मो घर के भीतर ।। घर-अँगना चकचक ले लागे । बिजली ले अँधियारी भागे ।। सबो  काम  तोरे  ले होवय । एहा कपड़ा तक ला धोवय ।। *मुकेश उइके "मयारू"* छंद साधक-- सत्र 16 पाली, जिला-- कोरबा

बाल कविता *मुनु बिलाई*

 बाल कविता *मुनु बिलाई* देख तो दाई-देख तो दाई, घर मा आगे-मुनु बिलाई, थोरको नइ डेरावत हे, म्याऊ म्याऊ नरियावत हे, चढ़गे हावय कोठी मा, मार ना ओला लउठी मा, लउठी मा जब लागही, खदबद-खदबद भागही, देख तो दाई-देख तो दाई, घर मा आगे-मुनु बिलाई, कृष्णा पारकर सीपत बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

बाल गीत

 बाल गीत चल जी गोलू पेड़ लगाबो। सबो डहर हरियाली लाबो।।  सुंदर सुंदर होही भुइयाँ।  सब ला मिलही सुघघर छइयाँ।।  किसम किसम के फूल लगाबो।  घर अँगना बारी महकाबो।।  चिरई चुरगुन करहीं बासा।  सब प्राणी ला मिलही साँसा।।  आशा देशमुख

बाल कविता - पेड़ लगावव*

 *बाल कविता - पेड़ लगावव* आवव  भाई  आगू  आवव। बंजर भुइयाँ ला हरियावव।। फूल जड़ी बूटी  मिल जाही। शुद्ध  हवा  पानी  हा आही।। एक  पेड़  के  कीमत  भारी। कभू चलाहू  झन जी आरी।। खेत खार अउ नरवा  तरिया। झन छूँटय जी खाली परिया।। हरियर - हरियर  पेड़ लगाहू। तभे  छाँव  सुग्घर सब पाहू।। बोधन राम निषादराज✍️

बाल-कविता (घनाक्षरी)

 *खाई खजानी*  बाल-कविता (घनाक्षरी)  लइका : भात नइ खावँव दाई, मोला चाही कोनों खाई, काहीं-कुछु खाय बर, मुँह पनछात हे। रात-दिन दार-भात, जी बिट्टागे खात-खात, देख रामू-श्यामू मन, टुहूँ ला देखात हे। नड्डा-चना-मुँगफली, देख हाँका परे गली, सोन पापड़ी ला मोर, मन सोरियात हे। खाँव-खाँव हवै चोला, दे दे दाई पैसा मोला, आनी-बानी ओदे दाई, खजानी बेचात हे।। दाई :  लिखस-पढ़स नहीं, अढ़ोथौं करस नहीं, खाली खाई-खजानी मा, मन ओरमात हस। कभू खाहूँ ओला कहे, कभू खाहूँ एला कहे, घेरी-बेरी पैसा बर, बाबू रे रिसात हस। चल पढ़ बेटा मोर, टीवी गेम ला तैं छोड़, कहि-कहि थकगेंव, मोला बेंझियात हस, खा ले खाई कतको गा, बात मान अतको गा, पढ़ लिख तको बेटा, काबर तंगात हस।। बलराम चंद्राकर भिलाई

बोधनराम निषादराज के 5 बाल कविता

 *बाल कविता-* (1) सरस्वती दाई दाई    ओ     वरदान दे। वीणा  के  सुर  तान दे।। मँय  अड़हा  हँव शारदा, मोला   थोकन   ज्ञान दे। आखर  जोत  जलाय के मोर  डहर  ओ  ध्यान दे। जग मा नाम कमाय बर, मोला  कुछ  पहिचान दे। तोरे     चरन     पखारहूँ, सेवक  ला ओ  मान दे।। ~~~~~~~~~~~~~~~ (2) गुरु वंदना पइँया   लागँव   हे  गुरुवर। रद्दा   रेंगँव   अँगरी   धर।। चरण - शरण मा आए हँव। तुँहरे  गुन  ला   गाए  हँव।। मँय  अड़हा  अज्ञानी  जी। दौ  अशीष  वरदानी  जी।। जग   के    तारनहारी  जी। जावँव मँय  बलिहारी जी।। पार   लगादौ   नइया  जी। गुरुवर लाज  बचइया जी।। ~~~~~~~~~~~~~~~~ (3) हाथी दादा पहन   पजामा   हाथी  दादा। आमा  टोरय  मार  लबादा।। आमा  हा   गिरगे   पानी मा। मँगरा के  जी  रजधानी मा।। मँगरा  धरके  सुग्घर  खावय। हाथी दादा  बड़  चुचवावय।। टप टप टप टप लार बहावय। मँगरा पानी  दउड़  लगावय।। हाथी  मँगरा  काहन  लागय। भीख दया के माँगन लागय।। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (4) गोलू भोलू रोज  मुँदरहा  कुकरा  बोलय। चिरई चुरगुन हा मुँह खोलय।। लाली  लाली   दिखै  अगासा। मन मा जागय सुग्घर आशा।। दाई  उठ  के  बड़े  बिहनिया। हउँला  बोहे  जावय प

बाल कविता - मछरी*

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  *बाल कविता - मछरी* रिमझिम रिमझिम पानी बरसय। नरवा  तरिया  मन बड़ हरषय।। मछरी  कूदन  लागय  छम-छम। ढोल  बजाय  मेचका डम-डम।। देख   टेंगना   झटपट    आवय। साँवल   भुंडा   गीत  सुनावय।। बनय   मोंगरी     दूल्हा   राजा। कछुआ  पेट  बजावय  बाजा।। सबो किसम के  मछरी आवँय। लइकामन के  बड़ मन भावँय।। बोधन राम निषादराज✍️

चांँटी* *चौपाई* (बाल कविता)

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*चांँटी* *चौपाई* (बाल कविता) नान नान चांँटी हर आथे। घर कुरिया मा बिला बनाथे।। नइ बाँचय अब रोटी पीठा। अब्बड़ खाथे ओमन मीठा।। करिया भुरुवा लाली चांँटी। खोदत रहिथे बारी माटी।। हाथ गोड़ सब मा चढ़ जाथे। ओखर चाबे बड़ अगियाथे।। येती वोती घूमत रहिथे। अपने भाखा का का कहिथे।। लम्बा लम्बा लइन लगाथे। इक दूसर के पाछू जाथे।। मदद करे बर आगू आथे। एक्के संँघरा जम्मो जाथे।। ताकत रखथे येमन भारी। सीखव चांटी ले सँगवारी।। प्रिया देवांगन *प्रियू* राजिम