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Showing posts from April, 2021

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - खेल

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - खेल घानी     मूनी    घूमबो। ये  भुइयाँ  ला  चूमबो।। आवव  मिलके खेलबो। पित्तुल  पथरा  मेलबो।। चक्का  डंडा  हाथ  मा। चलौ चलाबो साथ मा।। फुगड़ी खोखो ला भली। चलौ खेलबो जी गली।। बिल्लस  भौरा  खेल मा। लइका  मन के मेल मा।। ~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - नोनी

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - नोनी खुल-खुल-खुल-खुल नोनी हाँसय। फुदुक-फुदुक गिर गजबे नाचय।। छिन  मा  रोवय  छिन मा  गावय। मया  दिखावत  मन ला  भावय।। दाई    के   अँचरा   ला   धर  के। दउड़य   कोंटा  कोंटा   घर  के।। चिखला    माटी   अंग   सनावय। अउ  घुलंड  के  खुशी  मनवाय।। नोनी    सुग्घर     रानी     लागय। दाई   के   दुख   तुरते    भागय।। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - करिया बादर

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - करिया बादर करिया  करिया  बादर  छाथे। बादर  बड़  पानी   बरसाथे।। हवा   गरेरा    सँग  मा  लाथे। बिजुरी नाचत बड़ चमकाथे।। गड़ गड़  बाजा  खूब बजाथे। छानी  परवा  ला  छलकाथे।। ये  हा  सबके  प्यास  बुझाथे। बंजर  भुइयाँ  ला  हरियाथे।। देख   मेचका   गीत   सुनाथे। करिया बादर  घुमरत आथे।। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

बाल कविता - पुरुषोत्तम ठेठवार (ठेठ ) केरा

 बाल कविता - पुरुषोत्तम ठेठवार  (ठेठ )  केरा  सुन गुरवारी  जाबो बारी  पाके केरा  घेरा घेरा ।।             अबड मिठाथे              मन ला भाथे               मनभर खाबो                घर ले आबो ।। खाही दाई  खाही भाई  केरा पाका  खाही काका ।। पुरषोत्तम ठेठवार

बाल कविता - कवि मनोज कुमार वर्मा

 बाल कविता - कवि मनोज कुमार वर्मा विषय - पानी झर झर पानी बरसे। लइका के मन हरसे।। सुग्घर महकय माटी। खेलय भॅंवरा बाटी।। गली खोर बोहावय। डोंगा सबो चलावय।। फिंजत खेलय सब झन। बॉंट खुशी हरसय मन।। सुख ला बादर परसे।  लइका के मन हरसे।। झर झर पानी बरसे..... मनोज कुमार वर्मा बरदा लवन बलौदा बाजार

बाल कविता- श्री सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

 बाल कविता- श्री सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' मीठ कलिन्दर चानी नानी नानी नानी, भरे हववॅं मैं पानी। मोला देबे तॅंय हा, बड़े कलिन्दर चानी। लाली लाली गूदा, चान चान के खाहूॅं। करिया करिया बीजा, फुरक फुरक बगराहूॅं। ए ओ ए ओ नानी, मीठ कलिन्दर चानी। कोने घोरे हावय, एमा शक्कर पानी। -सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

बाल कविता-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

 बाल कविता-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' " चम्मच मा मैं खाहूॅं " ए गा ए गा नाना। जाना दुकान जाना। बड़े बड़े दू पाकिट, लाबे साबूदाना। राउत आये हावय। गोरस लाये हावय। ले ले ना ओ नानी। मैं भर देहूॅं पानी। पेक कटोरी लाहूॅं। फूॅंक फूॅंक जुड़वाहूॅं। गुत्तुर गुत्तुर सूप सूप, चप्पच मा मैं खाहूॅं। -सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

बाल कविता-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

 बाल कविता-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' " छा जा बादर छा जा " छा जा बादर छा जा। धर के आजा बाजा। खेल खेल मा मैं हा,  आज बने हॅंव राजा। तोला कहिथें दानी। बरसा देना पानी। पटपट पटपट बाजय, घर के खपरा छानी। छानी के सब पानी। ॲंगना मा सकलावय। मोर नानकन ॲंगना, टम टम ले भर जावय। घानी मूनी घानी। खेला आनी बानी। छपक छपक छप मनभर, खेलय मुनिया रानी। -सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर'' गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

चलो खेलबो खेल (बाल कविता)

  चलो खेलबो खेल  (बाल कविता)  चलो खेलबो खेल चलो खेलबो जुरमिल खेल, बिन पटरी के चलही रेल। नइ लागे बिजली अउ तेल, चलही गाड़ी रेलम पेल।। मजा अही अड़बड़ ये खेल, सिग्नल पा के चलही रेल। रेल समय मा सुग्घर मेल, नइ होवय गाड़ी हर फेल।। बनही कोई टी टी एक, करही सबके टिकट ल चेक। बिना टिकट के जाही जेल, चलही छुक छुक गाड़ी रेल।। रइपुर,दिल्ली अउ भोपाल, जयपुर,रीवा,नैनीताल। जाही कोई हर करनाल, मुंबई सूरत अउ इम्फाल।। राम कुमार चन्द्रवंशी बेलरगोंदी (छुरिया) जिला-राजनांदगाँव

बबा गये हावे जंगल

 बबा गये हावे जंगल बबा गये हावे जंगल, लही हमर बर तेंदू फल, गुदा गुदा ला हम खाबो, बीजा ला जी अलगाबो।। बीजा ला फेर लगाके, पानी दे बड़े बढ़ा के, फिर से हम तेंदू पाबो, सब झन हम मिलके खाबो।। तेंदू ले लकड़ी पाबो, कुर्सी अउ बेंच बनाबो, निक सनमाइका लगाबो, जब सगा अही बइठाबो।। गर्मी मा डारा छाबो, सुग्घर छइहाँ हम पाबो, गर्मी ला दूर भगाबो, जिनगी ला हाँस बिताबो।। राम कुमार चन्द्रवंशी बेलरगोंदी (छुरिया) जिला-राजनांदगाँव

बाल कविता) कोरोना ला भगवाबो

 (बाल कविता) कोरोना ला भगवाबो चलौ बगीचा मा जाबो, फूल उहाँ ले हम लाबो। खिले हवे सुग्घर-सुग्घर, महकत हावे महर-महर।। फूल हवे खुशबू वाला, गूँथ बनाबो जी माला। अही यशोदा के लाला, सखा संग बृज के ग्वाला।। हवे दयालू गोपाला, पहिनाबो हम हर माला। खुश होही बंशी वाला, वर देही दीनदयाला।। माखन अउ दही खवाबो, वर हम सब झन पाबो। पर्वत फिर से उठवाबो, कोरोना ला भगवाबो।। राम कुमार चन्द्रवंशी बेलरगोंदी (छुरिया) जिला-राजनांदगाँव

बाल कविता रचनाकार श्रीमती पद्मा साहू "पर्वणी" शीर्षक__ *आमा*

 बाल कविता रचनाकार श्रीमती पद्मा साहू "पर्वणी" शीर्षक__ *आमा* जाड़ भगागे जाड़ भगागे। गरमी  आगे  गरमी  आगे।। आमा तरबूज चार आगे । बाग बगीचा  आमा पाके। । दसरिया लंगड़ा कलमी आमा।  धर के लाइस झोला भर मामा ।। आमा अबड़ रसदार हवय । नाना हमर मजेदार हवय।। चुस चुस के आमा खायेन।  नाना धर सब छुट्टी मनायेन। नानी आमा पपड़ी बनाइस । कच्चा आमा के पना पिलाइस।। पद्मा साहू "पर्वणी" खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

बाल कविता- रामकली कारे

 बाल कविता- रामकली कारे       कुकुर पिला कुकुर पिला सुन ले रंगीला, भागत आथस खाये चीला। खेल- खेलबे संग मोर ता, रोज खवाहूॅ दूध म चीला।। भुकते रहिथस भू भू करके, छू कहे म तॅय जाथस छूवे। करिया सादा भुरवा ग पिला, तू- तू कहिथे नोनी शीला।। किंदरे जाथस बन कचरा मा, लकड़ी पथरा लाथस खीला। मान कहे झन बन ग हठीला, कुकुर पिला सुन ले रंगीला।। रचनाकार - रामकली कारे बालको कोरबा  (छ.ग.)

बाल कविता टोकरी- दिलीप कुमार वर्मा

 बाल कविता  टोकरी- दिलीप कुमार वर्मा  कहाँ जा थस डोकरी।  मुंड़ मा बोहे टोकरी।  टोकरी म काय हे।  ऊपर ले तोपाय हे।  का लुकाये जात हस।  चुपके चुपके खात हस।  हमू ला दु चार दे।  चीटिक मया तो वार दे।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता- दिलीप कुमार वर्मा बादर आजा

 बाल कविता- दिलीप कुमार वर्मा  बादर आजा  करिया बादर जल्दी आजा।  जल्दी आके पूरा छा जा।  सूरज हर आगी बरसाये।  हमर देह ला खूब जराये।  आगी मा पानी बरसा दे।  लगे आग ला सबो बुता दे।  हरियर हरियर धरती कर दे।   सब के दुख पीरा ला हर दे।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता - मथुरा प्रसाद वर्मा

 बाल कविता - मथुरा प्रसाद वर्मा बरसा  फर फर फर फर पाना डोले। सन सन सन सन हावा बोले। करिया करिया बादर छा गे। अब सब झन के मन हरियागे। झर झर झर झर बरसे पानी। होगे चिखला कर मनमानी। मथुरा प्रसाद वर्मा ग्राम- कोलिहा बलौदाबाजार

बाल कविता येती ओती जाव झन- दिलीप कुमार वर्मा

 बाल कविता  येती ओती जाव झन- दिलीप कुमार वर्मा  येती ओती जाव झन।  अदर कचर ला खाव झन।  बाढ़े हावय घाम हर।  जर जाही जी चाम हर।  चप्पल नइ हे पाँव मा।  बइठव अमुवा छाँव मा।    भौरा बांटी खेलबो।  गरमी खेलत झेलबो।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता - अनिल सलाम

 बाल कविता - अनिल सलाम  बबा के कहानी बबा सुनाथे एक कहानी। एक शहर के राजा रानी।। बड़ा दयालू मीठ जुबानी।  राहँय वोमन अब्बड़ दानी।। पेंड़ लगावय आनी बानी।  खूब बचावय बरसा पानी।।  परजा जम्मो सुख मा राहय।  जय हो राजा रानी काहय।।  रचनाकार - अनिल सलाम कांकेर छत्तीसगढ़

बाल कविता - मथुरा प्रसाद वर्मा

 बाल कविता - मथुरा प्रसाद वर्मा छेरी मोर छबिलिया छेरी मोर छबिलिया गाँव गली खोर। झन जा उल्हुवा पाना देहुँ टोर। भुइयां मा तोरे माढय नहीं पाँव। सरपट भागे बिजली तोरे नाँव।  बारी बखरी देखे मेरेर मेरेर मिमियाय।  खाके पीके तँय हा घुसघुस ले मोटाय। भइया मोरे गउकिन येला झन मार। नान नान पटरु  पिला देही चार। बाबू ओला बेंचही बलौदाबाजार। पइसा पाबो कस के मनाबो तिहार। मथुरा प्रसाद वर्मा  कोलिहा, बलौदाबाजार

बाल कविता- दिलीप कुमार वर्मा

 बाल कविता- दिलीप कुमार वर्मा  पतंग  गगन उड़ावत हवय पतंग।  सोनू ओखर देवत संग।  लम्बा पुछी लगाये हे।  फर-फर-फर फहराये हे।  धँ येती धँ ओती जाय।  कतको के ला काट गिराय।  अपनो पतंग कटाये हे।   मुँह लटका पछताये हे।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता - रचनाकार मनोज कुमार वर्मा

 बाल कविता - रचनाकार मनोज कुमार वर्मा विषय - मजा घर मा मजा बहुत आवत हे। कोरोना हर बरसावत हे।। घर मा हे दाई बाबू मन। इही मोर बर हे बड़का धन।। दिन भर रहिथन संग संग अब। दादी दादा मात पिता सब।।  मया बॉंट सुख परिघावत हे। चिंता नइ धन के आवत हे।। खुशी खुशी रोटी खावत हे।  घर मा मजा बहुत आवत हे।। मनोज कुमार वर्मा बरदा लवन बलौदा बाजार

बाल कविता -मथुरा प्रसाद वर्मा

 बाल कविता -मथुरा प्रसाद वर्मा  दादी माँ हर कहिथे मोर दुलरुवा। पापा कहिथे मोर, बता वो दादी तहीं सबो ला मँय हा राजा तोर। माँ हर देथे खई खजानी, पापा लान खिलौना। फेर तँय जादू झपकी देथस, जब जब आथे रोना। दिन भर माँ के गारी खाथव, अउ पापा के मार। फेर तँय दादी सब दिन मोला करथस मया दुलार। मथुरा प्रसाद वर्मा कोलिहा, बलौदाबाजार

बाल कविता - राकेश कुमार साहू

 बाल कविता - राकेश कुमार साहू    *पुतरा-पुतरी के बिहाव*  होवत पुतरा -पुतरी के बिहाव। सुग्धर लागत हाबय गाँव ।  बइठे हे सब पीपर के छाँव। होवत पुतरा- पुतरी के बिहाव। नान नान लइका थारी बजावत हे। धरे हाबय करसा, मड़वा सजावत हे। माढ़े हे पर्रा, तेल हरदी चढ़ावत हे। चलव मांदी मा चना मुर्रा ला खाव। होवत पुतरा- पुतरी के बिहाव। सुग्धर लागत हाबय गाँव । राकेश कुमार साहू  ग्राम सारागांव विकासखंड धरसींवा जिला-रायपुर छतीसगढ़

बाल कविता- अमृत दास साहू शीर्षक -घड़ी

 बाल कविता- अमृत दास साहू  शीर्षक  -घड़ी घड़ी बाजथे टिक टिक टिक । बेरा सदा बताथे ठीक । सबके घर अउ हाँथ मा। चुमचुम ले रहिथे ये फिट।      रहिथे येकर काँटा तीन।      चलथे जेहा रात अउ दिन।      देथे जे पल पल के हिसाब ।      सेकण्ड मिनट घंटा गिन। कोनो ना पावय येकर पार। चलथे जग येकरे रफ्तार । देथे ये हा सबला सीख। झन बइठो कोनो थक हार।        अमृत दास साहू  ग्राम -कलकसा ,डोंगरगढ  जिला- राजनांदगाँव (छ ग)

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - चना खाबो

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - चना खाबो खाबो चना  फोल के। बोली मीठ  बोल के।। पीपर  तरी  छाँव मा। बइठब बने ठाँव मा।। दाई   गाँव   जान  दे। बाबू  ला  मनान  दे।। लाबो  दही   जोर के। पीबो सब चिभोर के।। जम्मों   मया  घोर  दे। गुस्सा  रीस  छोड़ दे।। ~~~~~~~~~~~~~~ बोधन राम निषादराज सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल कविता - रामकली कारे मोर ममा दाई

 बाल कविता - रामकली कारे मोर ममा दाई मोर ममा दाई, पोसे ग बिलाई। चुपे चाप वो आके, खावय दूध मलाई।। मोर ममा दाई, पोसे ग बिलाई। म्याऊॅ म्याऊॅ करके, करे जीव करलाई।। मोर ममा दाई, पोसे ग बिलाई। राम राम गा कहिके, रोज कहय दुखहाई।। रचनाकार - रामकली कारे बालको कोरबा (छ.ग.)

बाल कविता कवि - पुरुषोत्तम ठेठवार ( ठेठ )

 बाल कविता  कवि - पुरुषोत्तम ठेठवार  ( ठेठ )  बादर करिया  बादर करिया आय हे  पानी पोठ गिराय हे  मेचका करथे टर टर टर  चमके बिजुरी लागे डर ।। पानी पानी खेती खार  नरुवा नदिया बोहय धार  तरिया डबरी मा पानी  बरसत हे बरसा रानी ।। अर तता के लागे सोर  करो किसानी जाँगर टोर  बासी खाके जोतव नाँगर  बज्जर करके पेरव जाँगर ।। अन भारी उपजाव जी उरिद मूंग कमाव जी बरसत हे करिया बादर  धान कमा लव जी आगर ।।

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - फूल मोंगरा

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - फूल मोंगरा फूल   मोंगरा    गजरा। काजर आँजँव बदरा।। सुरुज  देव  के  लाली। लगथँव भोली भाली।। गोंदा   पींयर    लुगरा। बेनी   झूलय  फुँदरा।। नाचे  के   मन  भावय। देख  कोइली  गावय।। आमा     के   अमराई। मोर     मयारू   दाई।। ~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

बाल कविता - शाला जाबो

 बाल कविता - शाला जाबो चलना संगी शाला जाबो। क ख ग घ के ज्ञान पाबो। आनी बानी खेल खेलबो। फिसलपट्टी अउ झूला झूलबो। मुफ्त मा कपड़ा पुस्तक पाबो। रोज मंझनियाँ भात खाबो। गांधी बबा के बात ला धरबो। सच के रद्दा मा सब चलबो। दाई ददा के नाम जगाबो। अपन गांव ला सरग बनाबो। पढ़बो लिखबो आगू बढ़बो।  सबले सुग्घर देश गढ़बो। नन्द कुमार साहू नादान ग्राम जरहा महका,तह छुरिया, जिला राजनांदगांव छ ग🙏🙏

छेरछेरा*

 *छेरछेरा* छेरछेरा जी छेर छेरा माँगत हें सब छेर छेरा। सुग्घर आए हवे तिहार खोर गली मा हे गोहार  कोठी के धान ल हेरा छेर छेरा---- बहिनी भउजी काकी दाई। कका बबा सब संगी भाई । देवत हावे जम्मों फेरा छेर छेरा--- धरे हवे सब बोरा बोरी टुकना टुकनी टूरा टूरी लहुटे घूमत संझा बेरा छेर छेरा--- सुधा शर्मा 8-4-21

बाल गीत केवरा यदु "मीरा "

 बाल गीत  केवरा यदु "मीरा " छन्न पकैया छन्न पकैया, दुलराथे गा महतारी। देवी के मूरत कहलाथे,होथे तारण हारी।। छन्न पकैया छन्न पकैया, रतिहा जाग पहाथे। बेटी बेटा के सुख खातिर,जागत लोरी गाथे।। छन्न पकैया छन्न पकैया, माँ ममता के छैंया । ठुकरावौ झन महतारी ला, लागौ ओकर पैंया।। छन्न पकैया छन्न पकैया,बोलो सुग्घर बानी। मात पिता के चरनन बीते, हँसी खुसी जिनगानी।। छन्न पकैया छन्न पकैया, सेवा ला तँय करले। चरण म चारो धाम हवय जी,सुख के झोली भरले।। छन्न पकैया छन्न पकैया, आशीर्वाद    पाबे। मातपिता भगवान मानले, सरग निसैनी जाबे। केवरा यदु "मीरा " राजिम

शीर्षक - दिल के मँय सिधवा सच्चा अँव

 बाल कविता - अशोक धीवर "जलक्षत्री" विधा/ मात्रा-  मुक्तक नुमा कविता/ 16-16 शीर्षक - दिल के मँय सिधवा सच्चा अँव छोटे मोटे मँय बच्चा अँव। सबले बढ़िया अउ सच्चा अँव।। ककरो बर नइ भेदभाव हे। दिल के मँय सिधवा सच्चा अँव।। बात मानथँव मँय बड़ भारी। कोनो ला नइ देवँव गारी।। सब लइका ले हिलमिल रइथँव। नइ मारँव जी कभू लबारी।। मोला सबझन छोटू कइथे। कतको झन हा मोटू कइथे। लइका मन हा हँसी उड़ाथे। खबड़ू पेटू लोटू कइथे।। रचनाकार-अशोक धीवर "जलक्षत्री"  तुलसी (तिल्दा-नेवरा)  जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)

बाल कविता-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 बाल कविता-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" हाथी मोटू चले खिंचाये बर फोटू। सज धज के हाथी मोटू। चश्मा आँख लगाये हे। टोपी मूड़ चघाये हे।। पहिरे हे गल भर माला। कान म झूलत हे बाला। रहिरहि सूड़ हलावत हे। फोटू कहि चिल्लावत हे। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को, कोरबा(छग)

बाल कविता - बोधनराम निषादराज

 बाल कविता - बोधनराम निषादराज विषय - कउआ कउआ बोलय काँव ले। दाई  आही   गाँव  ले।। दाई   हावय  घर  ममा। बाबू आही  जी कमा।। लोटा   पानी   लान लौ। कहना  मोरे  मान लौ।। बबा - डोकरी आस मा। बइठे  हे  बिस्वास  मा।। बने    मिठाई    झेलबो। पाछू   ताहन   खेलबो।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

पुतरी के बिहा- दिलीप कुमार वर्मा

 पुतरी के बिहा- दिलीप कुमार वर्मा पुतरी बर लुगरा चल लाबो।  बँह भर चूरी ला पहिराबो।  पौडर टिकली माहुर काजर।  ले के आबो आगर-आगर।  करधन कंगन मुंदरी माला।  नथली बिछिया पायल बाला।  दुलहन कस पुतरी ल सजाबो। पुतरा के सँग बिहा कराबो।   बजही जम के गाजा बाजा।  अब्बड़ मजा उड़ाबो आजा। रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता - बोधनराम निषादराज विषय - सिपाही

 बाल कविता - बोधनराम निषादराज विषय - सिपाही मँय भारत के वीर सिपाही, मुटका हाथ उठाहूँ जी। मोर देश के बइरी मन ला, दुरिहा बने भगाहूँ जी।। सरदी गरमी अउ बरसा हो, जम्मों ला सह जाहूँ जी। ये भुइयाँ के मान रखे बर, अपने प्रान गवाहूँ जी।। मोला लइका तुम मत जानौ, बइरी ले लड़ जाहूँ जी। देश धरम बर आगू आ के, पुरखा लाज बचाहूँ जी।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बालगीत - रामकली कारे

 बालगीत - रामकली कारे विषय - बादर आगे बादर.. आगे.. बादर.. आगे, अउ- अगास मा देखव छागे। रिमझिम सिमझिम जल बरसा के, टुप- टुप टुप- टुप गीत सुनागे।। बादर .. आगे ..बादर .. आगे.. कुआॅ- बावली नदिया- तरिया, आज सबो के प्यास बुझागे। रोकय ..छेंकय.. नोनी ..बाबू, छलछल छलछल धार बोहागे। बादर ..आगे ..बादर ..आगे... रचनाकार - रामकली कारे बालको कोरबा(छ.ग.)

बाल गीत

 बाल गीत आमा मौरे डारी डारी।। कोयल गावय सदा सुखारी।। पंछी चहकय ची ची घर मा।। पकडे़ जावय भागय डर मा।। रंग बिरंगी तितली उडगे ।। सूरज छत मा आगे चढ़गे।। छइहाँ देखव आघू भागय।। पाछू आवत पाछू आवय।। भरगे तरिया नदियाँ सुंदर ।। तउरत हावय लइका अंदर ।। तौर तौर के लइका भागय।। वो ही मा गा तमगा पागय।। टोरय आमा मउहा अमली।। लाटा कूटय चाटय कमली ।। देखत मा लार घलो टपकय।। चूस चूस खावय गा झपटय।। झूम झूम सब नाचय गावय।। पेड़ धरा मन सब हरियावय।। मनके भौरा बन मँडरावय।। फूल खिलय तितली  इतरावय।। धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर✍️📚

बाल कविता* *शीर्षक-केरा(केला)*

 *बाल कविता*  *शीर्षक-केरा(केला)* एक पेड़ म ,  ऐकेच खाम। जानत होबे, ओखर नाम।। पक्का पीयंर कच्चा हरियर। फरे रहिथे,कई कोरी फर।। कच्चा रांधय,  साग   दाई। पक्का खाथे सबझन भाई।। छोटे ल केरी, बड़े ल केरा। दिन भर खा ले कोनो बेरा।। जेन ल हवय, कफ सुगर। झन खावय वो,केरा फर।। बवासीर अनपचक अल्सर। रोग-राई ल , केरा लेथे हर।। नान्हे-बड़े,  सब   ल  भाथे। खावव जी, बड़ मजा आथे।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव

बाल कविता* *शीर्षक-चिरई आथे*

 *बाल कविता*   *शीर्षक-चिरई आथे* बड़े बिहना,चिरई आथे। छानी म बैठे,गाना गाथे।। कहिथे मोला,दे दव दाना। झटकुन घलो,हावै जाना।। नान्हे-नान्हे, लइका मोर। उठ जाथे बड़ होते भोर।। चीं चीं चीं चीं, करते होही। नइ जाँहू त , नँगत   रोही।। दाना वोला, खवाहूँ  मँय। उड़े ल घलो,सिखाहूं मंय।। फुर्रर-फुर्रर,उड़ही अगास। सपना मोर,उँखर विश्वास।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव

कज्जल छंद- बाल गीत

 कज्जल छंद- बाल गीत जरे चटाचट मोर पाँव।     मिलत नहीं हे कहूंँ छाँव।।         बंजर लागत हवय गाँव।              गर्मी ला कइसे जुडा़ँव।। तेकर सेती कहँव बात।     रुखराई झन काट घात।।          मोर बात झन देय मात।               पेड़ काट न मारव लात।। पुरखा मन ह काटत जाय।     पेड़ नहीं त का फल खाय।।         "जलक्षत्री" सब ला बताय।               नादानी के फल ल पाय।। अशोक धीवर "जलक्षत्री" तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला रायपुर (छत्तीसगढ़)

बाल कविता - बोधन राम निषाद विषय - दाई

 बाल कविता - बोधन राम निषाद विषय - दाई दाई    ओ    दाई। खाबोन   मिठाई।। हाट   बाजार  मा। सुग्घर तिहार मा।। जाबो  ओ   मेला। बड़  रेलम  पेला।। धक्का ला  खा के। आबोन  भगा के।। पीबोन        मलाई। दाई     ओ    दाई।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

नावा चप्पल-दिलीप कुमार वर्मा

 नावा चप्पल-दिलीप कुमार वर्मा जरय भोंभरा चट चिट चइया।   कइसे के जरही अब भइया। मोर ददा सब दुख ला जाने। नावा चप्पल ले के लाने।  चट-चट चट-चट महूँ बजाहूँ।  रेंगत जेन गली मा जाहूँ।  धुर्रा माटी अब नइ होवय।  काँटा खूंटी अब न गड़ोवय।  गद्दी वाला चप्पल हावय।  रंग चटक मोरो मन भावय।  रोज-रोज येला मँय धोहूँ।  मुरसरिया मा रख के सोहूँ।  रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल.कविता शाला जाबो

 बाल.कविता शाला जाबो चलौ पढ़े बर शाला जाबो। पढ़े लिखे बर पुस्तक पाबो।। ज्ञान भराये हे किताब मा। पढ़ पढ़ रखबो जी हिसाब मा।। बंदर भालू हिरन हाथी। हवय पढ़ाई सच्चा साथी।। रोज रोज हम पुस्तक पढ़बो। जिनगी ला खुद हम अब गढ़बो।। ✍️जुगेश कुमार बंजारे "धीरज"         9981882618 [4/7, 11:37 AM] दिलीप वर्मा सर: साइकल कैंची फाँक-दिलीप कुमार वर्मा साइकल सीखत हे सोनू,  सँग मा दउड़त हे मोनू।  कैची फाँक फँसाये हे,  हेंडिल सम्हल न पाये हे।  हॉफ पायडिल मारत हे,  झट ले पाँव उतारत हे।  फिर खट ले चढ़ जावत हे,  अड़बड़ मजा उड़ावत हे।  जाने का मनवा जागिस,  रेस चलाये बर लागिस। गड्ढा पागे हकरस ले।  सोनू गिर गे भकर ले।   रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल गीत - बोधन राम निषादराज

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - तितली तितली   रानी   तितली   रानी। सुग्घर चाल  चलन औ  बानी।। किसम-किसम के पाँख लगे हे। मन  मा  आशा  मोर  जगे  हे।। आबे    अँगना   फूल   खवाहूँ। तोर  संग मा  मँय  उड़  जाहूँ।। दुनिया   ला    मोला    देखाबे। मोर  सहेली  तँय  बन   जाबे।। तितली   रानी   तितली   रानी। तँय  तो  हावस  बने सियानी।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बघवा राजा*

 *बघवा राजा* बघवा आगे बघवा आगे । देख वोला सबझन डर्रागे।      हुँड़रा रेड़वा पास ना आवय।      देखके बेंदरा पल्ला भागय। मारे जब बघवा हा दहाड़। झनके जंगल ,नदी ,पहाड़ ।      सुन दहाड़ सब काँपन लागे।      गिरत हपटत इत उत भागे। बघवा बोलिस पास मा आवव। मोला कोनो झन डर्रावव ।      मँय कोनो ला नइ तो खावँव।      धोखा देके मँय नइ जावँव। करव मोर ऊपर बिसवास । नइ टूटन दँव तुहँर आस।      बनगे बघवा जंगल के राजा।      बजावय परजा गाजा बाजा। रचनाकार-अमृत दास साहू ग्राम -कलकसा ,डोंगरगढ  राजनांदगाँव (छ ग )

बाल गीत - बोधन राम निषादराज

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - शिक्षा गोंटा  पथरा  आवव  बिन लौ। एक तीन अउ दो ला गिन लौ।। गिनती  सुग्घर  लिखबो  भाई। खुश  हो  जाही   हमरो  दाई।। वन-टू-थ्री  अउ  फोर   पढ़ाबो। शिक्षा के  सब गुन ला गा बो।। जोड़ - घटना   करबो   सुग्घर। गुणा - भाग मन धरबो सुग्घर।। खेल - खेल  मा  शिक्षा   पाबो। पढ़े लिखे  मनखे  बन  जाबो।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल कविता पद्मा साहू पर्वणी

 बाल कविता  पद्मा साहू पर्वणी विषय __ कोकवा अमली कोकवा अमली लटलट ले । दिखत हाबे गा बटबट ले ।। आइस गरेरा अमली झर गे। बिनत ले सब झोली भर गे।। फोरेन अमली बीजा निकालेन।नून मिरचा डाल लाटा बनालेन।। खायेन लाटा मजा आवत ले। नइ पइस ते होगे चुचवावत ले।। पद्मा साहू "पर्वणी" खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

चंदा मामा

 चंदा  मामा  चंदा मामा आओ ना । आज धरा पर आओ  ना।। हाथ जोड़ कर तुझे मनाऊँ  आओ मामा तुम्हें  बुलाऊँ तारों  को साथ में लाओ  ना। आज धरा - खेलेंगे हम छुपन  छुपाई  जैसे गगन में छुपते  हो। आते हो छुप   जाते  हो  झाँक  झाँक कर हँसते  हो। मामा अब तरसाओ  ना।। आज धरा- आओ    खीर    बनायेंगे  नाचेंगे   और   गायेंगे। तारों  संग  धूम मचायेंगे सोनू  मोनू भी आयेंगे। गीत  हमें  सुनाओ  ना।।आज धरा- थाली के जल में दिखते हो  झिलमिल झिलमिल करते हो। हाथ  मेरे नहीं    आते हो  क्या  तुम  मुझसे डरते हो । बात आज बतलाओ  ना।।आज धरा- ईद के चाँद बन आते हो  करवा चौथ में पूजे जाते  हो। कवि की कविता सजाते  हो प्रेयसी  की आनन बन जाते हो। मामा कुछ तो बता कर जाओ  ना।आज धरा- अभी  तो  छोटा  बच्चा हूँ  अकल  का भी अभी  कच्चा हूँ। होकर   बड़ा  दिखलाऊँगा। तुमको  छूकर  मैं  आऊँगा। मामा मान भी जाओ ना ।। आज धरा-- केवरा यदु"मीरा "

बाल कविता पोखन लाल जायसवाल

 बाल कविता       पोखन लाल जायसवाल छुक छुक छुक छुक रेल चलाबो। झटकुन सबझन पढ़े ल जाबो। गुरुजी ले सब करबो बिनती। हम ल सिखा दे गुरुजी गिनती।   पढ़ लिख के सब आगू बढ़बो। जिनगी अपने हाथ म गढ़बो। अप्पढ़ जान सबो भरमाथे। पढ़े लिखे मन बड़ सुख पाथे। रस्ता सुख के अपन बनाबो। शिक्षा के हम दीप जलाबो। छुक छुक छुक छुक....। पोखन लाल जायसवाल पलारी जिला बलौदाबाजार भाटापारा (छग.)

सयकिल दउड़-दिलीप कुमार वर्मा

 सयकिल दउड़-दिलीप कुमार वर्मा सोनू मोनू सयकिल धर के।  चन दिस हवय चलाये बर।  दुन्नो झन तइयार खड़े हे।  सरपट दउड़ लगाये बर।  अंतस मन मा जोश भरे हे।  सब ले अउवल आये बर।  दउड़े लागिस सयकिल सरपट।  ऊपर मा उड़ियाये बर।  चलत-चलत गड्ढा हर आगे।  भूले ब्रेक लगाये बर।  सयकिल तक उड़िया के गिर गे।  दुन्नो ला समझाये बर।   बात समझ मा आगे सोनू मोनू सीख चलाये बर। जादा तेज चलाना होथे।  हाथ पाँव तुड़वाये बर। रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल गीत - श्लेष चन्द्राकर शीर्षक - चल भइया गा पेड़ लगाबो।

 बाल गीत - श्लेष चन्द्राकर शीर्षक - चल भइया गा पेड़ लगाबो। बखरी ला अउ नीक बनाबो। चल भइया गा पेड़ लगाबो।। फूल फूलही ते ममहाही। तब तितली भँवरा मन आही।। जीव-जंतु ला तीर बलाबो। चल भइया गा पेड़ लगाबो ... मोर गोठ ला तँय हा ले सुन। रोज देखबो चिरई-चिरगुन।। सुग्घर दिन-भर छइँहा पाबो। चल भइया गा पेड़ लगाबो ... आम बिही अउ जामुन फरही। पाका फर ले डलिया भरही।। उसर-पुसर के हर फर खाबो। चल भइया गा पेड़ लगाबो ... रुखमन ले ऑक्सीजन मिलथे। तेखर ले ये जिनगी चलथे।। सब ला येकर लाभ बताबो। चल भइया गा पेड़ लगाबो ... रचनाकार - श्लेष चन्द्राकर, पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद ( छत्तीसगढ़)

गिनती- दिलीप कुमार वर्मा

 गिनती- दिलीप कुमार वर्मा एक दो तीन चार।  पढ़ना लिखना हावय सार।  पाँच छय सात आठ।  याद करव जी पूरा पाठ।  नौ दस ग्यारा बारा।  रहव नही कोनो बेचारा।  तेरा चउदा पन्द्रा सोला।  पढ़े लिखे सीखत हे भोला।  सतरा अठरा उन्नीस बीस।  पाठ सपाट सबो कर दीस।  रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छन्न पकैया- दिलीप कुमार वर्मा

 छन्न पकैया- दिलीप कुमार वर्मा छन्न पकैया छन्न पकैया  बबलू बंटी आवव।  खेल-खेल मा का सीखे हव  आके अभी बतावव।  छन्न पकैया छन्न पकैया  गिनती जोड़ घटाना।  पढ़ना लिखना तको सिखेहन  अँगरेजी बतियाना।  छन्न पकैया छन्न पकैया  सुग्घर करे पढ़ाई।  होन हार लइका ला पा के  मगन ददा अउ दाई।  रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बालगीत :- जगदीश "हीरा" साहू

 बालगीत  :- जगदीश "हीरा" साहू विषय :- भालू राजा टोप मूड़ मा पहिरे भालू, आँखी मा चश्मा दमकाय। मटक-मटक के रेंगत हावय, आजू-बाजू देखत जाय।। का लेवँव मैं सोचत हावय,  भालू राजा पहुँच बजार। मदुरस देखय बड़ा मगन हो, लेवय खाये बर भरमार।। गीतकार :- जगदीश "हीरा" साहू

बाल कविता - बोधन राम निषादराज

 बाल कविता - बोधन राम निषादराज विषय - मिट्ठू सुग्घर  चना  फोलथे  मिट्ठू। गुरतुर  बने  बोलथे  मिट्ठू।। हरियर  पाँखी  भाथे  मिट्ठू। लाली मिरच सुहाथे  मिट्ठू।। चोंच फभै चुक लाली मिट्ठू। लगथे  गोठ  निराली मिट्ठू ।। लइका  सँग  इतराथे  मिट्ठू। बइठ भात ला खाथे मिट्ठू।। मिट्ठू  बड़  चिल्लाथे मिट्ठू। सुख  संदेश  बताथे  मिट्ठू।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

नावा कुरता - दिलीप कुमार वर्मा

 नावा कुरता - दिलीप कुमार वर्मा नावा कुरता पहिरे सोनू।  मुच-मुच-मुच मुस्कावत हे। मुड़ी उठा के हीरो जइसे।  खोर गली मा जावत हे। जेला देखय बहुत लजावय।  मुड़ी तहाँ गड़ियावत हे। संगी साथी मन ले मिलके।  सब झन ला दिखलावत हे। नवा-नवा के मजा अलग हे। एक तरफ तिरियावत हे।  मइला जाही कुरता कहिके।  खेले बर घबरावत हे। रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

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  बाल कविता- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"  तितली-  ये तितली रंग बिरंगी। मोर बेटी के हे सँगी। इंद्रधनुष कस पंख सजाये। छुई मुई कस ये ह लजाये। गिंजरे हो के मतंगी। ये तितली रंग बिरंगी।। फूल कली मा बइठे रहिथे। परी बरोबर ये हा उड़थे। बनके बाग पतंगी। ये तितली रंग बिरंगी।। देथे सब झन ला संदेश। लोभ द्वेष ला देवव लेस। तब रहे न जिनगी तंगी। ये तितली रंग बिरंगी।। रचना- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

बाल गीत - बोधन राम निषादराज

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - गरमी छुट्टी खुशी मनाबो  छुट्टी होगे। बड़ इतराबो छुट्टी होगे।। सँगवारी मन देखत होही, मजा उड़ाबो  छुट्टी होगे। ममा गाँव के सुरता आगे, जल्दी  जाबो  छुट्टी होगे। खेल खिलौना माढ़े देखव, चलौ  सजाबो  छुट्टी होगे। बाग बगइचा  सुन्ना  होही, धूम  मचाबो   छुट्टी  होगे। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल गीत--आशा देशमुख

 बाल गीत--आशा देशमुख मुसवा के बिहाव मुसवा बनगे दूल्हा राजा। बने लगावै डीजे बाजा। चिरई चुरगुन बने बराती। छुछु मन सब बने घराती। चिटरा चुनिया नाच दिखावे। टेटका टंहके मुड़ी हलावे। आघू आघू रेंगे भालू। पाछू में हे कुक्कुर कालू। मैना पड़की गाना गावैं। सुआ कोयली राग सुनावैं। गाड़ी घोड़ा सजगे हावय। दूल्हा राजा ला बैठावय। आशा देशमुख एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

बाल गीत - बोधनराम निषादराज विषय - सरस्वती दाई

 बाल गीत - बोधनराम निषादराज विषय - सरस्वती दाई दाई    ओ   वरदान  दे। वीणा के  सुर  तान दे।। मँय अड़हा हँव  शारदा, मोला थोकन  ज्ञान दे।। आखर जोत जलाय के,  मोर डहर ओ ध्यान दे। जग मा नाम कमाय बर, मोला कुछ पहिचान दे। तोरे   चरन     पखारहूँ, सेवक  ला  ओ मान दे। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

कोरोना ला मार भगाहूं* सुधा शर्मा

 *कोरोना ला मार भगाहूं* सुधा शर्मा        बाबू तँय बंदूक मँगा दे, कोरोना ला मार भगाहूं। घर ले बाहिर खेलन नइ दे, मँय हर एकर मजा  बताहूं। संगवारी मन दिखे नहीं अब , खोर -गली होगे हे सुन्ना। कतका टी बी ला मैं देखँव, खेलतेंव खेला सब जुन्ना।  काबर छेंकत राखे सबला, ओकर बँधना ला छोड़ाहूं। बाबू--' नाक- कान ला जम्मों बाँधे,  कोनो हर नइ चिनहावय। बबा -कका भाई बहिनी ला, ये बैरी सब ले दुरिहावय। कइसन एकर मुहरन हे बाबू, ओकर धुर्रा ला छोड़ाहूं। बाबू---- पढ़ई- लिखई स्कूल छूटगे , मोला कुछू समझ नी आवय। गिटिर -पिटिर मोबाइल करथे, आँखी घलव हर पिरावय।  बिगाड़थे बूता ल सबके, एकर बूता  सबो बनाहूं। स्वरचित  सुधा शर्मा 7-4-21

बाल गीत - बेंदरा आय शशि साहू - बाल्को

 बाल गीत - बेंदरा आय शशि साहू - बाल्को बेंदरा बइठे अमली छाँव सोचत हे मँय काला खाँव सबो कटागे बन के रूख लागत हावय जम के भूख।।  जेन उजारे हमरे छाँव जावत हँव मँय उँखरे गाँव छानी कूदत बेंदरा जाय झींक पुदक के सबला खाय।।  बारी बखरी करे उजार लावय सँग मा घर परिवार किटकिटावत दाँत देखाय मार भगावव बेंदरा आय।।

बाल गीत-चौमासा

 बाल गीत-चौमासा करिया करिया बदरा छाय। गरज घुमर के पानी आय। अपन अपन बर कागज लाव। अउ सुग्घर जी नाव बनाव। पानी मा काकर!अघवाय।। गरज घुमर के पानी आय। तरिया डबरी बड़ खुशहाल। पानी ले हे मालामाल। नदिया नरवा मन उफनाय।। गरज घुमर के पानी आय। झिंगुर मेढक गावय गीत। चौमासा भर दुन्नों मीत। नाचे कूदे अउ इतराय।। गरज घुमर के पानी आय। छावत देख घटा घनघोर। बन मा नाचत हावय मोर। तीतुर अउ घाघर नरियाय।। गरज घुमर के पानी आय। रमेश कुमार मंडावी कोलियारी (गैंदाटोला) राजनादगाँव

शीर्षक- संभल के रद्दा करबे पार

 *बाल कविता* शीर्षक- संभल के रद्दा करबे पार रद्दा पार तैं करबे भइया। बात धियान धरबे भइया।। पहिली अपन डेरी  देख। जेवनी देख बात सरेख।। देख बने अउ  कर  बिचार। नइ दिखै जब मोटर कार।। जब रद्दा खाली हो   जाय। मोटर गाड़ी कांही न आय।। संभल के रद्दा करबे पार। तभे कहाबे तैं हुशियार।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव

शीर्षक-हमर अंग

 *बाल कविता* शीर्षक-हमर अंग आँही-बाँही म,दू ठन कान। दू ठन आँखी देवय धियान।। गोठ ल सुनत रहिथे कान। चारी-चुगली अउ गुनगान।। नाक  बनावट  हवय  खास। सुँघय हवा ममहई अउ बास।। मुँह के गुन हे अड़बड़ पोठ। खाना  पीना  सुग्घर   गोठ।। मूंड़ बिना  बेकार हे  तन। जइसे रेल   बिना  इंजन।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव

बाल कविता विषय - बिलई (सार छंद)

 बाल कविता विषय - बिलई (सार छंद) एक सहर मा बिलई मनके, गजबे सुघर कहानी। चेत लगाके  सुनहू सबझन, बोलत हावय नानी।। चार  बिलइया  चार कहानी, एक करे मनमानी। कारी  बिलई  बनगे रानी, एक  बिचारी  कानी।।   ऐती ओती  चारो  कोती, घुमर  घुमर  के खावय। कखरो घर मा दूध भात खा, कखरो घर ललचावय।। मोरो  थोरकन  चेत करहू, कहिथे  बिलई कानी। हाथ गोड़  धर बइठे हावँव, सुनले  बिलई रानी।। अतके  बोलत कहिथे  नानी, दार  भात हा  चुरगे। लेवव खा के सोवव सबझन, हमरो किस्सा पुरगे।। नागेश कश्यप कुंवागांव, मुंगेली.

बाल गीत - बोधनराम निषादराज विषय - बाबू

 बाल गीत - बोधनराम निषादराज विषय - बाबू बाबू     देखव   आवत हे। कनिहा ला मटकावत हे।। नान्हें नान्हें  गोड़ उठावत, दुन्नों   हाथ   झुलावत  हे। छुन्नुर  छुन्नुर  पइरी सुग्घर, रेंगत  बने   बजावत   हे। बाबू के सुग्घर मुख देखव, हाँसत  अउ  मुस्कावत हे। लइकापन के हँसी ठिठोली, सब के  मन ला  भावत हे। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल गीत- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

 बाल गीत- अशोक धीवर "जलक्षत्री" विधा- चौपाई छंद सगा हमर घर मा आये हे। खई खजानी धर लाये हे।। खेले बर खेलौना लाये। बाजा लाये अबड़ बजाये।          दाई ददा ह खउ ला खाये।          मीठ मिठाई मोला भाये।।          बाजा भाई बहिन बजावै।          छीना झपटी गजब मतावै।। हाथ बिछलगे गिरगे बाजा। छरियागे मरकी अउ छाजा।। भाई बहिनी मुड़ धर रोवै। तँय फोरे कहि झगरा होवै।। गीतकार -अशोक धीवर "जलक्षत्री" ग्राम- तुलसी (तिल्दा-नेवरा)  जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़) सचलभास क्रमांक 9300 716 740

बाल कविता-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

 बाल कविता-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज" विषय-बरफ देख बरफ वाले हा आय। पोंप पोंप ओ अबड़ बजाय। लाली पिंवरी मन ला भाय। खाये बर जिंवरा ललचाय।। सब संगी मन दउँड़े जाँय। एकक दूदी बरफ बिसाँय। कोनों घुरहा सउघे पाँय। चुँहक चुँहक के मजा उडाँय।। बिनती हावय अतके मोर। दाई देना गठरी छोर। पैसा माँगय लाला तोर। आधा बरफ खवाहूँ टोर।। छंदकार- द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज" बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

बाल कविता-हेम साहू

बाल कविता-हेम साहू आसो गरमी के दिन आगय। सुरुज देव आगी बरसावय।। खरी मंझनिया लू बरपावय। नोनी सबला बात बतावय।। डारा पाना सबो सुखावय। रोज झाँझ हर खूब जनावय। लकलक तीपत धरती हावय। चट चटाक पाँव जरत जावय।। रुख राई सबके मन भावय। जीव पेड़ छइहा सुस्तावय।। गरमी के दिन बैठ बितावय। ठण्डा ठण्डा बढ़िया लागय।। -हेमलाल साहू  छंद साधक सत्र-1 ग्राम- गिधवा, जिला बेमेतरा

मुसुवा बने रखवार-दिलीप कुमार वर्मा

 मुसुवा बने रखवार-दिलीप कुमार वर्मा जोश-जोश मा मुसुवा इक दिन।  बन बइठे सीमा रखवार।  काँधा रख बंदूक पहुँच गे।  जिहाँ बरफ के भारी मार।  किट-किट किट-किट दाँत करे अउ।  तन काँपे रुखुवा कस डार।  बैरी ले टकराये पहिली।  मुसुवा बपुरा माने हार।  मुँह लटकाये वापिस आगे।  ठंडा ला नइ पाइस झेल।  सीमा के रखवारी करना।  नोहय लइका मन के खेल।  रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

बाल कविता - बोधन राम निषादराज विषय - पानी

 बाल कविता - बोधन राम निषादराज विषय - पानी पानी   रे    भइ    पानी। एखर   ले   जिनगानी।। बिन  पानी  नइ   जंगल। कइसे    होही    मंगल।। आवव   सबो    बचाबो। तभे   अन्न   हम  पाबो।। जुरमिल   पेड़   लगाबो। शुद्ध    हवा    बगराबो।। मानौ     मोरे      कहना। फिर तो सुख मा रहना।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल कविता पद्मा साहू पर्वणी विषय __ कोकवा अमली

 बाल कविता  पद्मा साहू पर्वणी विषय __ कोकवा अमली कोकवा अमली लटलट ले । दिखत हाबे गा बटबट ले ।। आइस गरेरा अमली झर गे। बिनत ले सब झोली भर गे।। फोरेन अमली बीजा निकालेन।नून मिरचा डाल लाटा बनालेन।। खायेन लाटा मजा आवत ले। नइ पइस ते होगे चुचवावत ले।। पद्मा साहू "पर्वणी" खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - तितली

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - तितली तितली   रानी   तितली   रानी। सुग्घर चाल  चलन औ  बानी।। किसम-किसम के पाँख लगे हे। मन  मा  आशा  मोर  जगे  हे।। आबे    अँगना   फूल   खवाहूँ। तोर  संग मा  मँय  उड़  जाहूँ।। दुनिया   ला    मोला    देखाबे। मोर  सहेली  तँय  बन   जाबे।। तितली   रानी   तितली   रानी। तँय  तो  हावस  बने सियानी।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बघवा राजा*

 *बघवा राजा* बघवा आगे बघवा आगे । देख वोला सबझन डर्रागे।      हुँड़रा रेड़वा पास ना आवय।      देखके बेंदरा पल्ला भागय। मारे जब बघवा हा दहाड़। झनके जंगल ,नदी ,पहाड़ ।      सुन दहाड़ सब काँपन लागे।      गिरत हपटत इत उत भागे। बघवा बोलिस पास मा आवव। मोला कोनो झन डर्रावव ।      मँय कोनो ला नइ तो खावँव।      धोखा देके मँय नइ जावँव। करव मोर ऊपर बिसवास । नइ टूटन दँव तुहँर आस।      बनगे बघवा जंगल के राजा।      बजावय परजा गाजा बाजा। रचनाकार-अमृत दास साहू ग्राम -कलकसा ,डोंगरगढ  राजनांदगाँव (छ ग )

बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - शिक्षा

 बाल गीत - बोधन राम निषादराज विषय - शिक्षा गोंटा  पथरा  आवव  बिन लौ। एक तीन अउ दो ला गिन लौ।। गिनती  सुग्घर  लिखबो  भाई। खुश  हो  जाही   हमरो  दाई।। वन-टू-थ्री  अउ  फोर   पढ़ाबो। शिक्षा के  सब गुन ला गा बो।। जोड़ - घटना   करबो   सुग्घर। गुणा - भाग मन धरबो सुग्घर।। खेल - खेल  मा  शिक्षा   पाबो। पढ़े लिखे  मनखे  बन  जाबो।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल कविता - चंदा मामा

 बाल कविता - चंदा मामा चंदा मामा  आजा  तँय घर। खीर खवाहूँ माली भर-भर।। मोरे  अँगना  तँय हा आबे। चंदैनी  ला  घलो   बलाबे।। खेल खेलबो  रात-रात भर। संगे  जम्मों फुग्गा ला धर।। बात   मानले   चंदा  मामा। बने  खवाहूँ  गुरतुर आमा।। रद्दा    देखत   रहिहूँ   तोरे। अँगना  मा  आजाबे  मोरे।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

मोर पापा

 मोर पापा बड़ अच्छा हे पापा मोर। रोज घुमाथे पापा मोर।। गुस्सा कभू देखावय नहीं। हमर बिना वो खावय नहीं।। माँ हर कहूँ कभू गुस्साथे। मारे बर हमला दउड़ाथे।। पापा आके तुरत बचाथे। हमर आगू मा वो आ जाथे।। नवा-नवा कपड़ा वो लेथे। लाके सुघर खेलौना देथे।। अबड़ हँसाथे पापा मोर। बड़ अच्छा हे पापा मोर।। जगदीश साहू

बाल कविता

 बाल कविता  लाल पताल  करे कमाल ।। बिके बजार  हे रसदार ।।          झोर मिठाथे            मन ला भाथे ।।            चटनी पिस ले             सील म घिस ले ।। मिरचा धनियाँ  डारे मुनियाँ ।। झोर बनाथे  अबड मिठाथे ।।                लाल पताल                 खा सुखलाल ।।                 तन बजराही                  ताकत आही ।। पुरूषोत्तम ठेठवार  ग्राम - भेलवाँटिकरा  जिला - रायगढ  छत्तीसगढ

बाल कविता - मँगसा

 बाल कविता - मँगसा भुनुन भुनुन वो करै घात। सुग्घर गीत बने  सुनात।। मउका पावय रात रात। कान-कान मा करै बात।। मँगसा चाबय हाथ गोड़। बबा ह भागय खाट छोड़।। डारा पाना लाय जोर। डार गोरसी बार टोर।। मँगसा होवय हलाकान। मारय थपरा बबा तान।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

आमा

 आमा   आमा देखे मन ललचा गे।   कइसे येला पावँव। कोन उदिम करके आमा ला।    झटपट अभी गिरावँव। संग बेंदरा करँव मितानी।  या खुद से चढ़ जावँव। बइठ कन्हैया जइसे रुख मा।  आम मजा ले खावँव। कहूँ बेंदरा सब खा देही।  फेंक दिही बस गोही। येखर ले पथरा दे मारँव।  काम बने सब होही। दिलीप कुमार वर्मा

बाल गीत - नोनी*

 *बाल गीत - नोनी* मुचमच मुचमुच हाँसय नोनी। सुवा बरोबर बासय नोनी।। दाई ददा के बने दुलौरिन। ठुम्मुक ठुम्मुक नाचय नोनी।। घर दुवार सुन्ना येखर बिन। मन ला सबके भावय नोनी।। पड़हन दे बड़हन दे बेटी ला। सोन के हंडा आवय नोनी।। नारायण वर्मा

कागज के नाव

 कागज के नाव  कागज के इक नाव बनाहूँ।  नदिया मा वोला तउराहूँ।  बइठ तहाँ घूमे बर जाहूँ।  दुनिया घूम मजा मँय पाहूँ।  संग ददा दाई हर जाही।  मोला सरवन जइसे भाही।  नाव चले फिर छप्पक-छइया।  हम सब कहिबो हइया-हइया। दिलीप कुमार वर्मा

बाल गीत - स्कूल

 बाल गीत - स्कूल दाई मोला सिलहट देदे, स्कूल डहर ओ जाहूँ। पढ़ लिख दाई ये दुनिया मा, सुग्घर नाम कमाहूँ।। सैनिक बनके बइरी मन ला, बढ़िया मजा चखाहूँ। बने गुरूजी बनके दाई, लइका घलो पढ़ाहूँ।। नेता बन के देश धरम बर, मँय हा मर मिट जाहूँ। संविधान मा सबके हित बर, सुग्घर नियम बनाहूँ।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

कलम

 कलम  मोर कलम हे जादूगर।  जइसे येला लेथौं धर।  चलत रथे ये हा फर-फर।   जइसे हवा चले सर-सर।   कोरा कागज झट भर दय।  काम बड़े ये हर कर दय।  जब ले येला पाये हँव।  हरदम अउवल आये हँव।  दिलीप कुमार वर्मा

मदारी

 मदारी  गाँव मदारी आय हे।  डम-डम ढोल बजाय हे।   नाचत हावय बेंदरा।  पहिरे चिरहा चेंदरा।  भालू खेल दिखात हे।   थोरिक नइ सरमात हे।  सब के मन हरसात हे ताली खूब बजात हे दिलीप कुमार वर्मा

बाल कविता

 बाल कविता हाथी चाॅटी होय तियार, जाय दुनों गा पार पहार। चढ़े गरब मा होय सवार, हाथी गिरथे बारम्बार।। चाॅटी करथे सोच विचार, रेंगत जाय गा लगातार। चाॅटी पहुॅच छुवे मींनार, हाथी देख परे बीमार।। रामकली कारे बालको कोरबा

कहूँ पाँख मोरो होतिस

 कहूँ पाँख मोरो होतिस  कहूँ पाँख मोरो होतिस ता।  ऊपर मा उड़ियातेंव।  बरसा के दिन जइसे आतिस।  बादर के घर जातेंव।  बात-बात मा सब बादर ला।  संगी अपन बनातेंव।  बादर के सँग घूम घाम के।  मँय अपनो घर आतेंव।  जइसे गरमी के दिन आतिस।  संगी अपन बलातेंव।  जिहाँ-जिहाँ सूखा रहितिस ता। बादर उहाँ घुमातेंव। दिलीप कुमार वर्मा

बाल गीत *मोबाइल*

 बाल गीत *मोबाइल* बड़े-बड़े मोबाइल टावर, येला चाही बिजली पावर। डॅंग डॅंग ले वो ठाढ़े हावै, चार गोड़ मा माढ़े हावै। डिट्टो लगथे सरग निशेनी, जइसे मुड़ मा खोपा बेनी। काम हवय बिजली के गहरा,  तुरत बनाथे चुंबक लहरा। उप्पर उप्पर पवन डहर ले, गोठ बात हा चले लहर ले। शोर खबर ला भेजे फन फन, रिंग टोन हा बाजे घन-घन। गोठ करे बर परदा खोलो, बटन चपक के हैलो बोलो।। महेंद्र कुमार बघेल

चाँद सुरुज के झगड़ा

 चाँद सुरुज के झगड़ा  सुरुज कका आगी कस गोला।  दिनभर आगी दागय।  चंदा मामा ठंडा-ठंडा।  देख सुरुज ला भागय।  धरती दाई बीच पिसागे।  चाँद सुरुज के झगड़ा।  एक संग दुन्नो नइ आवँय।  गजब हवय जी लफड़ा।  धरती दाई बीच आय ता।  चंदा देख रिसावय।  चंदा दूर करे बर चाहय।  सुरुज कका नइ भावय।  मोला दुन्नो करा मया हे।  का मँय हाल बतावँव।  आरी पारी देखत रहीथौं।  संग खेल नइ पावँव।  दिलीप कुमार वर्मा

झुन्ना झूले बेंदरा

 झुन्ना झूले बेंदरा  झुन्ना झूलत रहे बेंदरा।  ठाँगा पुछी लपेट।  हवा चलिस तब जोरदार से।  ले लिस अपन चपेट।  टूट परिस ठाँगा हकरस ले।  आय बेंदरा संग।  धरती मा गिरगे भकरस ले।  बंदर होय अपंग।  जादा मस्ती ठीक नही हे।  इही सँदेसा देत। उछल कूद भारी पर जाथे।  अब तो जावव चेत।  दिलीप कुमार वर्मा

मुसुवा राजा

 मुसुवा राजा  मेंछा ताने मुसुवा राजा।  जंग लड़े बर आगे।  देख बिलइया आगू ठाढ़े।  पुछी टाँग फिर भागे।   सोंचे राहय होही कोनो।  मुसुवा अलवा जलवा।  उठा-उठा के पटक दुहूँ फिर।  खाये मिलही हलवा।  पाछू पर गे रहय बिलइया।  सरपट दउड़ लगावय।  बपुरा मुसुवा बिला खुसर के।  अपनो जान बचावय।  दिलीप कुमार वर्मा

मुसुवा के सपना

 मुसुवा के सपना  मुसुवा लानिस ढोलकी।  दे-दे ताल बजाय।  येती वोती कूद के।  सब ला नाच दिखाय।  हीरो बनहूँ सोंच के।  निशदिन जोर लगाय।  बजा-बजा के ढोलकी।  दिन भर नाचत जाय।  परे चमेटा जोर से।  गये ढोलकी फूट।  बंद करे फिर कूदना।   सपना गय सब टूट। दिलीप कुमार वर्मा

पेंड़ कभू गुस्सा होतिस

 पेंड़ कभू गुस्सा होतिस  पेंड़ कभू गुस्सा होतिस ता।  करतिस गजब कमाल।  पेंड़ कटइया मन ला थपरा  दे के करतिस लाल।  रकसा जइसन हाथ लमा के।  देतिस धर के खींच।  पटक-पटक के जीव छड़ातिस   कहितिस मरजा नींच।  पाँव बढ़ा के टाँग फसातिस।  देतिस तुरते चीर।  मोर दरद ला तँय नइ जाने।  तोर सुनव नइ पीर।  कभू-कभू गुस्सा होये ले।  बन जाथे सब काम।  सिधवा मन ला काट-काट के।  करथें लोग तमाम।  दिलीप कुमार वर्मा

बाल गीत - मछरी

 बाल गीत - मछरी रिमझिम-रिमझिम पानी बरसय। नरवा  तरिया  मन बड़ हरषय।। मछरी  कूदन  लागय   छम-छम। ढोल  बजाय  मेचका डम-डम।। देख    टेंगना  झट  पट   आवय। साँवल  भुंडा   गीत    सुनावय।। बनय    मोंगरी    दूल्हा    राजा। कछुवा  पेट  बजावय    बाजा।। सबो  किसम  के  मछरी आवय। लइका मन के बड़  मन भावय।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बादर आगे

 बादर आगे देखव संगी बादर आगे। सब किसान के मन ला भागे।। गड़गड़-गड़गड़ गरजत हावय। चम-चम बिजली चमकत हावय।। मोर झूम के नाचत हावय। नाचत नाचत पाँख उठावय।। रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे। देख सबो के मन हा हरसे।। जगदीश "हीरा" साहू

रेल के खेल-बाल कविता

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  रेल के खेल-बाल कविता चलो खेलबों जुरमिल खेल। छुकछुक कहिबों बनके रेल। खड़े रबों डब्बा कस टेक। इंजन बनबों कोनो एक।। धुवाँ उड़ाबों सीटी पार। सबे तीर परही गोहार। खेल खेल मा बाँधे आस। जाबों दिल्ली ले मद्रास।। रुकबों पाके सिग्नल लाल। हरियर देख बदलबों चाल। बढ़बों एक दुसर ला पेल। मजा उड़ाबों बनके रेल।। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को, कोरबा(छग)

बाल कविता* शीर्षक-सगा पुतानी

: *बाल कविता* शीर्षक-सगा पुतानी खेल खेलौना, आनी   बानी। पोरा चुकिया, सगा पुतानी।। पुतरी   पुतरा, नानुक लुगरा। अकती बिहाव, बाजा बजाव।। सगा  सोदर। आबे तैं घर।। मिनेश साहू गंडई जिला राजनांदगांव 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐  मिनेश: बाल कविता शीर्षक- मेला मेला जाबोन। खाई खाबोन।। ढ़ेलवा झूलबो। मजा पाबोन।। सर्कस   रेल। मदारी  खेल।। खोवा जलेबी। गुपचुप  भेल।। भीड़ भड़क्का। नंगत   धक्का ।। बीही     लेबो । गेदरा  पक्का।। नवा  खेलौना। चस्मा  मोटर।। घूम  घाम के। आबोन   घर।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव

दिलीप वर्मा जी की बाल कवितायें

  दिलीप वर्मा : मेला  मेला घूमे जाsहूँ।  सरपट दौड़ लगाsहूँ।  खई खजेना खाsहूँ।   अब्बड़ धूम मचाsहूँ।   दिलीप कुमार वर्मा 💐💐💐💐💐💐💐💐💐  दिलीप वर्मा: जाँता अउ ढेंकी  जाँता करथे घर-घर घर-घर।  ढेंकी भुकुरुस भुकुरुस ताय।  जाँता पीसय गहूँ चना ला।  ढेंकी ले तो धान कुटाय।  दिलीप कुमार वर्मा 💐💐💐💐💐💐💐💐💐  दिलीप वर्मा: चाँटी  खदबिद-खदबिद दउड़त रहिथे।  जाने काय जरूरी काम।  दिखे एकता एमा संगी।  जेखर चाँटी हावय नाम।  चाँटी चट करथे गुड़ शक्कर।   तेल तको बर दउड़त आय।  खई खजेना झामत रहिथे।  मन्दरस खातिर जान गँवाय।   दिलीप कुमार वर्मा 💐💐💐💐💐💐💐💐  दिलीप वर्मा : हाथी  हाथी दादा आवत हे।  जब्बर सूंड हलावत हे।  रेंगत हावय धमरस धइया।  दुरिहा सब हो जावव भइया।   दिलीप कुमार वर्मा 💐💐💐💐💐💐💐💐💐 दिलीप वर्मा : पेंड़ आम के  महूँ लगाहूँ पेंड़ आम के।  सुने हवँव बड़ हवय काम के।  सेवा करके बड़े बढ़ाहूँ।  येला संगी अपन बनाहूँ।  बड़े होय फिर फर लग जाही।  मिट्ठू तक खाये बर आही।  जब मन करही मँय चढ़ जाहूँ।   बइठ मजे से आमा खाहूँ। दिलीप कुमार वर्मा 💐💐💐💐💐💐💐💐💐 दिलीप वर्मा : शेर  शेर दहाड़त रहिथे अब्बड़।  बब्ब

मुसुवा

 मुसुवा  कस रे मुसुवा तही बता दे।   झटकुन कहाँ लुकाथस।  राँपा कुदरी कहाँ रखे तँय। कइसे बिला बनाथस।  कुटुर-कुटुर रतिहा भर बाजय।  का तँय भला चबाथस।  कोरा माटी रोज निकाले।  बता कहाँ ले लाथस।  तोर बिला हर हे सुरंग कस।  भूल भुलइया लागे।  तभे पार कोनो नइ पावय।   कोन डहर तँय भागे।  दिलीप कुमार वर्मा

चिरई

 चिरई  चिंव-चिंव चिंव-चिंव करे चिरइया।  रोज बिहानी आके।   सुते रहँव मँय रोज जगावय। मोला गीत सुनाके।  दिन भर दाना पानी खातिर।  दूर-दूर उड़ियावय।  पकड़-पकड़ के किरा मकोरा।  लइका खातिर लावय।  संझा बेरा घर मा आवय।   मोरो मन बहलावय। चिंव-चिंव चिंव-चिंव करे चिरइया।  लोरी सुघर सुनावय। दिलीप कुमार वर्मा

बाल कविता

 खई खजाना आनी बानी। इमली लाटा आमा चानी। बेचत श्याम बरफ के गोला। खावैं ननकू सोहन भोला। आशा देशमुख

मोर बबा के तर्रा मेंछा

 मोर बबा के तर्रा मेंछा मोर बबा के पँर्री मेंछा।  हावय तर्रा-तर्रा।  देखत जिवरा हर घबराथे।   बबा अबड़ हे खर्रा।  होत बिहानी भर-भर रोटी।  दबा-दबा के खाथे।  देर कहूँ हो जय खाना मा।  फिर भारी चिल्लाथे।  धरे गोटानी गली निकल जय।  देख सबो घबराथें।  तर्रा मेंछा आगे कहिके।  झटपट सबो लुकाथें।  ताव मार मेंछा मा रेंगय।  भले रहय जी पँर्रा।  मोर बबा के तर्रा मेंछा।  हवय बबा कस खर्रा।  दिलीप कुमार वर्मा

बाल-गीत - विरेन्द्र कुमार साहू

 बाल-गीत - विरेन्द्र कुमार साहू बारी जाहूँ अमली लाहूँ। धनिया मिरचा नून मिलाहूँ। कुचर-कुचर के एक मिलाहूँ। गोल-गोल दू तीन बनाहूँ। मनभरहा मँय लाटा खाहूँ। चट चटाक चट मुहूँ बजाहूँ।। विरेन्द्र कुमार साहू साधक सत्र - 9

बाल गीत-नदी

 बाल गीत-नदी खल्लर खल्लर गाना नदी गात हे गाना नदी टेड़गा रेंगत बोले।  येती वोती कनिहाँ डोले।  भेंट करत तरिया पोखर सन।  गावत गीत सुहाना।  खल्लर खल्लर गाना । नदी गात हे गाना।  कब्भू रेंगय सीधा तन के।  कभू गिरे वो झरना बन के।  खेत खार सन मिले लिपट के।  कुआँ बोर झर जाना।  खल्लर खल्लर गाना।  नदी गात हे गाना।  सावन मा हो जावय हाथी।  गर्मी मा दुब्बर जस चाँटी।  बारी बखरी संग बइठ के।  सुख दुख ला गोठियाना।  नदी गात हे गाना।  खल्लर खल्लर गाना।  शशि साहू बाल्को कोरबा

करोना

 करोना  दाई दाई आज बता तँय।  होथे काय करोना।  गाँव गली सब सुन्ना होगे।  पर गे रोना धोना।  बंद परे इसकुल सब हावँय।  बने हवन घर खुसरा।  संगी साथी के बिन दाई।  हो गे हन खस भुसरा।  कइसन येखर रूप बता तँय।  कोन डहर ले आथे।  का चाकू हथियार धरे हे।  जेमा मार गिराथे।  एक बार मोला मिल जावय।  तब मँय मजा चखाहूँ।  कान पकड़ कुटकुट ले छर के।  ओखर नाँव मिटाहूँ। दिलीप कुमार वर्मा

ददा

 ददा  मोर ददा हे सब ले बढ़िया।  जइसे कहिथौं करथे।  आनी बानी खेल खिलौना।  ला के झोली भरथे।  पीठ चढ़ा के घोड़ा जइसे।  सरपट दौंड लगाथे।  किसिम-किसिम के खई खजेना।  रोज मोर बर लाथे।   कभू रिसाथौं अबड़ मनाथे।  रो-रो आँसू झरथे।  कभू कहूँ गुस्सा हो जाथौं।  ददा तहाँ बड़ डरथे।  दिलीप कुमार वर्मा

कूलर पंखा

 कूलर पंखा गर्मी बाढ़त हे बड़ भारी, टप-टप चुहे पसीना। लटपट मा गुजरत हे दिन हा,  दूभर होगे जीना।। पापा लेके आइस पंखा, मम्मी भर दिच पानी। हवा मिलय तब सुग्घर ठंडा, लगे नीक जिनगानी।। जगदीश "हीरा" साहू

फक्कड़ राम

 फक्कड़ राम  बबलू भइया फक्कड़ राम।  करय नही एक्को जी काम।  खाये खातिर अघुआ ताय।  चिक्कन चिक्कन चाँटत खाय।  अबड़ लपरहा हावय जान।  पाक जही सुन तोरो कान।  जेखर जाँगर सरहा होय।  झूठ बोल अपने मुँह धोय।  येती वोती के सब बात। चुगली करत रहे दिन रात।  घर समाज बर बोझा ताय।  अइसन मन ले राम बचाय।  दिलीप कुमार वर्मा

निसैनी

 निसैनी बाबू जी जब जंगल जाये। दू ठन बाँस काट के लाये।। नाप-जोंख के छेद बनाये। पक्ति ओमा सात लगाये।। बने निसैनी रुचमुच सुग्घर। माँगे आवय हमर गाँव भर।। काम हमर वो अड़बड़ आये। चढ़य पटउँहा छानी छाये।। जगदीश "हीरा" साहू

बादर

 बादर  बादर भइया जल्दी आजा।  पानी के बरसा बरसा जा।  गरमी अब्बड़ बाढ़े हावय।   धरती ला पूरा झुलसावय।  पेंड़ तको ले पाना झर गे।   जीव तड़फ के कतको मर गे।  सुक्खा होगे नदिया तरिया।  सुग्घर धरती होगे परिया।  रसता तोरे देखत हावन।  कइसे के हम जान बचावन।  मर जाबो जे तँय नइ आबे।  अभी बता कब तँय बरसाबे।  दिलीप कुमार वर्मा

सरकस-दिलीप वर्मा

 सरकस-दिलीप वर्मा भालू ढोल बजावत हे।  बंदर नाच दिखावत हे।  हाथी खेलत हे फुटबॉल।  शेर दहाड़त खुसरे जाल।  साइकल कुकुर चलावत हे । मिट्ठू गीत सुनावत हे।    नोनी बाबू आवत हे।  जोकर खूब हँसावत हे।  दिलीप कुमार वर्मा

भालू -दिलीप वर्मा

 भालू -दिलीप वर्मा होटल पहुँचे भालू भइया।  नाच दिखावय ताता थइया।  माँग समोसा गप-गप खावय।  डोसा भजिया चट कर जावय।  मीठा देखत मन ललचा गे।  भालू के मुँह पानी आगे।  नाचन लागे छम्मक-छम्मक।  ढोल बजावय ढम्मक-ढम्मक।  रस्स मलाई बरफी खाहूँ।  तब्भे दुसर गली मँय जाहूँ।    अब तो भालू जिद मा आगे।  सेठ मलाई देवन लागे।  दिलीप कुमार वर्मा

बाल कविताएँ

  शोभमोहन श्रीवास्तव: बाल कविता नदिया जाथे जइसे धार। सूरुज जाथे क्षितिज पार।। पहिर ओढ़ के हो तैयार। पढ़ लिख के बनबो हुसियार।। शोभामोहन श्रीवास्तव 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐  शोभमोहन श्रीवास्तव: बालगीत देखत हे टी.वी. कर चालू।। बइठे खात पराठा आलू। गदबिद गदबिद दँउड़त भालू। ताली देख बजात धमालू।। शोभामोहन श्रीवास्तव 💐💐💐💐💐💐💐💐  शोभमोहन श्रीवास्तव: बालगीत बड़े बिहनिया उठ के भाई। परबो पाँव ददा अउ दाई।। नहा खोर के हो तैयार। जाबो पढ़े बने हुसियार ।। शोभामोहन श्रीवास्तव

बालगीत

 बालगीत अब तो गरमी के दिन आगे। सूरज भैया जल्दी जागे। चल बजार ले मटका लाबो। ककड़ी अउ कलिंदर खाबो। गरम गरम जी लू हर चलथे। रुख राई मन पंखा झलथे। तरिया डबरी सुक्खा परगे। नान नान मछरी मन मरगे। आशा देशमुख

बाल गीत - हाथी दादा

 बाल गीत - हाथी दादा पहन पजामा हाथी दादा। आमा टोरय मार लबादा।। आमा हा गिरगे  पानी मा। मँगरा के जी रजधानी मा।। मँगरा धरके खावन लगाय। हाथी दादा बड़ चुचवावय।। टप-टप-टप-टप लार बहावय। मँगरा पानी दउड़ लगावय।। हाथी मँगरा काहन लागय। भीख दया के माँगन लागय।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल गीत - गोलू भोलू

 बाल गीत - गोलू  भोलू रोज मुँदरहा कुकरा बोलय। चिरई चुरगुन हा मुँह खोलय।। लाली लाली दिखै अगासा। मन मा जागय सुग्घर आसा।। दाई उठ के बड़े बिहनिया। हउला बोहे जावय पनिया।। बाबू  गरुवा  ला  रेंगावय। देख बबा हा चहा बनावय।। गोलू भोलू चहा बोर के। खावय बिस्कुट टोर-टोर के।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बाल गीत *बादर*

 बाल गीत   *बादर* घिरगे बादर पानी आही। रुख राई हा खूब नहा-ही। टप-टप-टप ओसारी झरही। बूँद ल लइका हाथ म भरही। तत-तत बइला गाड़ी चलही।  खेत किसानी झूम लहरही। डबरा तरिया भर-भर जाही। धरती दाई बड सुख पाही।  *रचनाकार-मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

बाल गीत - नदी पहाड़

 बाल गीत - नदी पहाड़ आजा  पाछू  तँय  हा बाबू। तोरे मँय नइ आवँव  काबू।। नीचे   आबे   ऊपर  चघहूँ। ऊपर चघबे  पल्ला  भगहूँ।। हाथ तोर मँय नइतो आवँव। आगू  पाछू   तोरे  जावँव।। मोला  आँखी  झन  देखाबे। ये बाबू  तँय  हा  पछताबे।। दउड़-दउड़ के तँय थक जाबे। हाथ कभू नइ  मोला  पाबे।। रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

गुरुजी-दिलीप वर्मा

 गुरुजी  गुरुजी बन के हाथी सब ला।  देवत राहय सीख।  मिहनत करके खाना चाही।  कभू न माँगव भीख।    बंदर कहिथे साँच कहत हव। भीख माँगना खीक।  पेट भरे के मजबूरी ता।  चोरी करना ठीक।  हाथी फिर फटकारत कहिथे।  चोरी करना पाप।  धीरे-धीरे सबो बताहूँ।  बइठ अभी चुप चाप।  दिलीप कुमार वर्मा

हाथी- मिनेश साहू

हाथी- मिनेश साहू हाथी आगे,   हमर   गाँव  लंबा मोटहा,ओखर पाँव सुपा  जइसन,हावै  कान खाथे पेड़ के,  डारा पान पाछू मा लइका,  मन घूमै धरती दाई ला, हाथी  चूमै रुपिया पैसा, कोनो  देवय ऊपर बैठ बड़,मजा लेवय कोनो पूजै,गणपति जान भेंट करै दार,चाउँर  धान  करै अगोरा , लेवय  नाँव हाथी   आगे ,  हमर गाँव     आगू चलै,महावत भइया धरै आँकुश, चढ़ै खेदइया बबा कहै तँय, परले पाँव हाथी आगे,     हमर गाँव मिनेश साहू गंडई जिला राजनांदगांव

बाल कविता-मिनेश साहू

 *बाल कविता-मिनेश साहू *शीर्षक-टी वी कार्टून* बड़ मजा  आथे, टी वी के कार्टून। निंजा  हटोरिया, मिक्की डोरेमून।। जोड़ी  बने  हवै, पतलू अउ मोटू। चिंगम के चंगुल, नइ  बांचे  छोटू।। कृष्णा    शिवा, बाल   हनुमान। बबलू डबलू ले, लख्खा परेशान।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव

कुकुर (बाल कविता)-दिलीप वर्मा

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  कुकुर -दिलीप वर्मा मोर कुकुर के टेड़गा पूँछ।   बबा ऐंठ राखे जस मूँछ।  कतको सोज करँव नइ होय।   काँय काँय रतिहा भर रोय। भूँकत रहिथे वो दिन रात।  निशदिन खावत रहिथें लात।  कतको मार तभो नइ जाय।   जूठा पटरी चाँटय खाय।   मोर कुकुर अब्बड़ हुशियार। रतिहा जागय बन रखवार।   वफादार मा अउवल ताय।  मनखे तक ला धूल चटाय।  दिलीप कुमार वर्मा

बाल कविता :- जगदीश साहू

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  बाल कविता :- जगदीश साहू *मिट्ठू* हरियर-हरियर हवय रंग। करथे मनखे  सही तंग।। घूमय घर भर  संग- संग। देख  परोसी  रहय  दंग।। पान खाय कस चोंच लाल। जेन अबड़ करथे कमाल।। पाठ-सिखाये   ठोंक  ताल। खाये  मिरचा  लाल-लाल।। देखय   वो   रस्ता   निटोर। चिल्लाये  वो  अबड़ जोर।। पारा  भर  मा   करय  शोर। निकले सबझन गली खोर।। बइठे पिंजरा करे काम। बोले  मिट्ठू राम-राम।। रटे रात  दिन एक नाम। खावय रोटी दूध आम।। जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता) कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

घोड़ा-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

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  घोड़ा-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया" खदबिद खदबिद भागे घोड़ा। रहिथे सबले आगे घोड़ा। बिन बइठे रहि जाथे घोड़ा। खड़े खड़े सुस्ताथे घोड़ा। घोड़ा ला बड़ चना सुहाथे। पानी पीथे काँदी खाथे। हिनहिनाय घोड़ा हा भारी। रहिथे भुरुवा पढ़री कारी। होथे घोड़ा बड़ ताकतवर। बूता करथे सबदिन पर बर। राजा रानी करे सवारी। लइका तुम्हरो आही पारी। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को, कोरबा(छग)

बाल कविता-मिनेश साहू

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         बाल कविता-मिनेश साहू चिरैया                   सुन ग  भइया।            देख    चिरैया।।           आगे    अंगना।            झन तैं रंग ना ।।              दे   दे    दाना।            खाही   खाना ।।           पी ही   पानी।           चीं चीं  बानी ।।         फुर्र ले  उड़ाही।         बड़ मजा आही। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 शीर्षक-बबा के गोठ बबा कहिथे, सुग्घर   गोठ। सोला आना,सिरतोन पोठ।। बड़े बिहना , झटकुन उठ। कुनकुन पानी पी घुट-घुट।। पेट  ल साफ, करही भाई । कटही कतको, रोग  राई।। पेट कबजर,नइतो होवय। गैस बीमारी,नइ  पदोवय।‌। अनपचक हा, दुरिहा जाही। मूड़ पीरा  घलो  नइ  आही।। लहू रेंगाथे,    धर-धर-धर । बांच बीमारी, ले उम्मर भर।। दिनभर पानी, अड़बड़ पी। सौ बच्छर ले,  आगर  जी।। मिनेश कुमार साहू गंडई जिला राजनांदगांव 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 सुन ग भाई सुन ग    भाई। कहिथे   दाई।। बड़े      बिहना। झटकुन उठना।। नहा के आबे। बासी   खाबे।। जाबे     स्कूल। रहिबे जुरमिल।। बढ़िया   पढ़बे। तभेच    बढ़बे।। साहब   बनबे। गरब ले तनबे।। घर       दुवार। सुखी परिवार।। मिनेश कुम

हाथी के गाड़ी-दिलीप वर्मा

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  हाथी के गाड़ी-दिलीप वर्मा हाथी गाड़ी एक मँगाइस।  ओमा हथनी ला बइठाइस।   अपन डरावल बन के बइठे।  गाड़ी बपुरा रच रिच अइठे।  घर घिर घर घिर करत चलत हे।  धुँआ निकालत खूब जलत हे।   मजा लुटे तक नइ वो पावय। चारो चक्का फुस हो जावय।   दिलीप कुमार वर्मा

सूरज चाचा-अमृतदास साहू

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  सूरज चाचा-अमृतदास साहू पूरब दिशा ले आथस तँय  पश्चिम मा समाथस तँय  सोए रहिथे मनखे तेला  होत बिहनिया जगाथस तँय ।      जाड़ मा अब्बड़ भाथस तँय       गरमी मा बड़ सताथस तँय       संझा बिहने दिखथस लाल       दिन मा आँखी देखाथस तँय । बेरा ला सही बताथस तँय  रात ला दिन बनाथस तँय  भूले भटके मनखे मन बर  नवा बिहनिया लाथस तँय ।                अमृत दास साहू      ग्राम कलकसा, डोंगरगढ  राजनांदगाँव (छ ग)

मुसवा-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

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  मुसवा-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया" कुरकुर कुरकुर करथे मुसवा। खाके धान फुदरथे मुसवा। होथे करिया भुरुवा सादा। मिलथे खेत अउ घर मा जादा। बिला बनाके रहिथे मुसवा। चीं चीं चीं चीं कहिथे मुसवा। मेड़ पार नेवान कोड़थे। आरुग कुछु ला कहाँ छोड़थे। कुटी कुटी कपड़ा ला करथे। भँदई पनही घलो कतरथे। भाजी पाला तक नइ बाँचे। छानी परवा मा चढ़ नाँचे। जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को, कोरबा(छग)