बाल गीत- पेंड़ पेंड़! खड़े क्यों तुम रहते हो। काहे लाखों दुख सहते हो। सैर सपाटा करने जाओ। घूम-घूम कर मजा उड़ाओ। घर-घर जा मीठे फल बाँटो। जो चढ़ तोड़े उसको डाँटो। गर्मी में फिर मत घबराओ। नदी ताल जा प्यास बुझाओ। ऐरा गैरा जो भी आता। मार कुल्हाड़ी काट गिराता। हाथ पाँव को जरा चलाओ। जो भी काटे उसे ठठाओ। बाँध रखो ऐसों को जड़ से। डर के भागे देख अँकड़ से। कुछ भी कर सबको चमकाओ। अपना तुम अस्तित्व बचाओ। रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा बलौदाबाजार
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