मुसवा-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 


मुसवा-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

कुरकुर कुरकुर करथे मुसवा।
खाके धान फुदरथे मुसवा।
होथे करिया भुरुवा सादा।
मिलथे खेत अउ घर मा जादा।

बिला बनाके रहिथे मुसवा।
चीं चीं चीं चीं कहिथे मुसवा।
मेड़ पार नेवान कोड़थे।
आरुग कुछु ला कहाँ छोड़थे।

कुटी कुटी कपड़ा ला करथे।
भँदई पनही घलो कतरथे।
भाजी पाला तक नइ बाँचे।
छानी परवा मा चढ़ नाँचे।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Comments

  1. शिक्षा देवता बाल गीत बर बधाई भैया जी ।

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  2. बहुत सुन्दर सर जी

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  3. उहू नँदावत हे अब भाई
    बाढ़े हे कतका मँहगाई
    ऊपर ले बगरे कोरोना
    चारों कोती रोना धोना
    तेरा के आवत हें माता
    शायद बनके जीवन दाता
    रक्तबीज ल उही मारही
    जन मानस ल उही तारही...
    स्थिति सुधरै त बने लगै
    इही शुभकामना सहित
    👌👏👍👍🌹🙏🙏

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  4. वाहहहहह वाहहहहह

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  5. का बात हे गुरुवार । बढिया बाल रचना बर बधाई।

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