बादर
बादर
बादर भइया जल्दी आजा।
पानी के बरसा बरसा जा।
गरमी अब्बड़ बाढ़े हावय।
धरती ला पूरा झुलसावय।
पेंड़ तको ले पाना झर गे।
जीव तड़फ के कतको मर गे।
सुक्खा होगे नदिया तरिया।
सुग्घर धरती होगे परिया।
रसता तोरे देखत हावन।
कइसे के हम जान बचावन।
मर जाबो जे तँय नइ आबे।
अभी बता कब तँय बरसाबे।
दिलीप कुमार वर्मा
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