कुकुर (बाल कविता)-दिलीप वर्मा


 

कुकुर -दिलीप वर्मा


मोर कुकुर के टेड़गा पूँछ।  

बबा ऐंठ राखे जस मूँछ। 

कतको सोज करँव नइ होय।  

काँय काँय रतिहा भर रोय।


भूँकत रहिथे वो दिन रात। 

निशदिन खावत रहिथें लात। 

कतको मार तभो नइ जाय। 

 जूठा पटरी चाँटय खाय।  


मोर कुकुर अब्बड़ हुशियार।

रतिहा जागय बन रखवार।  

वफादार मा अउवल ताय। 

मनखे तक ला धूल चटाय। 


दिलीप कुमार वर्मा

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