पेंड़ कभू गुस्सा होतिस

 पेंड़ कभू गुस्सा होतिस 


पेंड़ कभू गुस्सा होतिस ता। 

करतिस गजब कमाल। 


पेंड़ कटइया मन ला थपरा 

दे के करतिस लाल। 


रकसा जइसन हाथ लमा के। 

देतिस धर के खींच। 


पटक-पटक के जीव छड़ातिस  

कहितिस मरजा नींच। 


पाँव बढ़ा के टाँग फसातिस। 

देतिस तुरते चीर। 


मोर दरद ला तँय नइ जाने। 

तोर सुनव नइ पीर। 


कभू-कभू गुस्सा होये ले। 

बन जाथे सब काम। 


सिधवा मन ला काट-काट के। 

करथें लोग तमाम। 


दिलीप कुमार वर्मा

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