बाल कविता विषय - बिलई (सार छंद)

 बाल कविता

विषय - बिलई (सार छंद)


एक सहर मा बिलई मनके, गजबे सुघर कहानी।

चेत लगाके  सुनहू सबझन, बोलत हावय नानी।।


चार  बिलइया  चार कहानी, एक करे मनमानी।

कारी  बिलई  बनगे रानी, एक  बिचारी  कानी।।

 

ऐती ओती  चारो  कोती, घुमर  घुमर  के खावय।

कखरो घर मा दूध भात खा, कखरो घर ललचावय।।


मोरो  थोरकन  चेत करहू, कहिथे  बिलई कानी।

हाथ गोड़  धर बइठे हावँव, सुनले  बिलई रानी।।


अतके  बोलत कहिथे  नानी, दार  भात हा  चुरगे।

लेवव खा के सोवव सबझन, हमरो किस्सा पुरगे।।


नागेश कश्यप

कुंवागांव, मुंगेली.

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