रेल के खेल-बाल कविता


 

रेल के खेल-बाल कविता


चलो खेलबों जुरमिल खेल।

छुकछुक कहिबों बनके रेल।

खड़े रबों डब्बा कस टेक।

इंजन बनबों कोनो एक।।


धुवाँ उड़ाबों सीटी पार।

सबे तीर परही गोहार।

खेल खेल मा बाँधे आस।

जाबों दिल्ली ले मद्रास।।


रुकबों पाके सिग्नल लाल।

हरियर देख बदलबों चाल।

बढ़बों एक दुसर ला पेल।

मजा उड़ाबों बनके रेल।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



Comments

  1. बहुत सुन्दर सर

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर बाल गीत भाई
    सटीक...👍👏👌👌🌹🌹

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन गुरूदेव

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

81 बाल कविताओं का संग्रह- बोधनराम निषादराज

बोधनराज निषादराज के दू बाल कविता

बाल गीत- पेंड़