दिलीप वर्मा जी की बाल कवितायें
दिलीप वर्मा : मेला
मेला घूमे जाsहूँ।
सरपट दौड़ लगाsहूँ।
खई खजेना खाsहूँ।
अब्बड़ धूम मचाsहूँ।
दिलीप कुमार वर्मा
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दिलीप वर्मा: जाँता अउ ढेंकी
जाँता करथे घर-घर घर-घर।
ढेंकी भुकुरुस भुकुरुस ताय।
जाँता पीसय गहूँ चना ला।
ढेंकी ले तो धान कुटाय।
दिलीप कुमार वर्मा
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दिलीप वर्मा: चाँटी
खदबिद-खदबिद दउड़त रहिथे।
जाने काय जरूरी काम।
दिखे एकता एमा संगी।
जेखर चाँटी हावय नाम।
चाँटी चट करथे गुड़ शक्कर।
तेल तको बर दउड़त आय।
खई खजेना झामत रहिथे।
मन्दरस खातिर जान गँवाय।
दिलीप कुमार वर्मा
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दिलीप वर्मा : हाथी
हाथी दादा आवत हे।
जब्बर सूंड हलावत हे।
रेंगत हावय धमरस धइया।
दुरिहा सब हो जावव भइया।
दिलीप कुमार वर्मा
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दिलीप वर्मा : पेंड़ आम के
महूँ लगाहूँ पेंड़ आम के।
सुने हवँव बड़ हवय काम के।
सेवा करके बड़े बढ़ाहूँ।
येला संगी अपन बनाहूँ।
बड़े होय फिर फर लग जाही।
मिट्ठू तक खाये बर आही।
जब मन करही मँय चढ़ जाहूँ।
बइठ मजे से आमा खाहूँ।
दिलीप कुमार वर्मा
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दिलीप वर्मा : शेर
शेर दहाड़त रहिथे अब्बड़।
बब्बर शेर रहत हे जब्बर।
शेर देख जम्मो थर्रावँय।
कोनो आगू मा नइ आवँय।
का हिरना का भालू हाथी।
शेर रखय नइ कोनो साथी।
जेला पावय मार गिरावय।
चीर फाड़ के चट कर जावय।
दिलीप कुमार वर्मा
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: घुघवा
रात होय ले घुघवा आवय।
पकड़-पकड़ मुसुवा ला खावय।
आके बइठय रात अटारी।
घूमत राहय बरछा बारी।
उदुक-उदुक अब्बड़ नरियावय।
जेन सुने ते हर डर्रावय।
देख पाय नइ बिहना बेरा।
खोर्रा मा फिर करे बसेरा।
दिलीप कुमार वर्मा
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दिलीप वर्मा: चिखला
गाँव गली चिखला भरमार।
चिखला ले हे खेती खार।
लइका दउड़त बाहिर जाय।
लथपथ चिखला रहे सनाय।
सम्हल-सम्हल के पाँव चलाव।
बिछल जवय झन देख बचाव।
जल्दी बाजी जेखर काम।
फदफिद फद फिर गिरे धड़ाम।
दिलीप कुमार वर्मा
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