मुसुवा बने रखवार-दिलीप कुमार वर्मा

 मुसुवा बने रखवार-दिलीप कुमार वर्मा


जोश-जोश मा मुसुवा इक दिन। 

बन बइठे सीमा रखवार। 


काँधा रख बंदूक पहुँच गे। 

जिहाँ बरफ के भारी मार। 


किट-किट किट-किट दाँत करे अउ। 

तन काँपे रुखुवा कस डार। 


बैरी ले टकराये पहिली। 

मुसुवा बपुरा माने हार। 


मुँह लटकाये वापिस आगे। 

ठंडा ला नइ पाइस झेल। 


सीमा के रखवारी करना। 

नोहय लइका मन के खेल। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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