दादा जी घोड़ा बन जाओ

 दादा जी घोड़ा बन जाओ 


दादा जी घोड़ा बन जाओ। 

मुझे बिठाकर सैर कराओ।


नदी ताल की ओर चलेंगे। 

जो देखे ओ हाथ मलेंगे। 


सरपट घोड़ा जब भागेगा। 

लम्बी दूरी झट नापेगा। 


जंगल पर्वत पार करेंगे। 

काँटों से हम नहीं डरेंगे। 


पंख लगा अब उड़ जाना है।  

बादल से फिर टकराना है। 


चंदा मामा घर जायेंगे।

घूम घाम वापस आयेंगे


दादा जी अब छड़ी उठाओ। 

घोड़ा बनकर सैर कराओ।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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