जंगल की सैर

 जंगल की सैर 


आओ बच्चों सैर करा दूँ। 

जंगल क्या होता दिखला दूँ। 


ऊंचे-ऊंचे पेंड़ खड़े हैं। 

तूफानों से सदा लड़े हैं 


पर्वत खाई और नदी है। 

पेंड़ लता से देख लदी है। 


कलकल नदियाँ गीत सुनाते। 

झरने झरझर ताल मिलाते। 


मोर पपीहा तोता मैना। 

कोयल बुलबुल प्यारे हैना। 


हाथी भालू शेर यहाँ है। 

हिरण लोमड़ी ढेर यहाँ है। 


कूद रहा पेड़ों पर बंदर। 

और बताऊँ क्या है अंदर। 


सांप अनेकों मिल जाएंगे। 

देख रूप दिल हिल जाएंगे। 


बिल के अंदर कोई रहता। 

कोई पानी जाड़ा सहता। 


शेर गुफा में डेरा डाले। 

चिड़िया अपनी नीड़ बनाले। 


उल्लू रहता खोल बनाकर। 

खूब डराता है चिल्लाकर।


जंगल है खतरों का डेरा। 

रात कभी ना करना फेरा। 


पगडंडी में सम्हल के चलना। 

साँझ ढले तो तुरत निकलना।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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