कालू

 कालू 


कालू कुकुर गजब के चालू। 

चुपके चुपके आवय। 

रँधनी मा राखे रोटी ला। 

धर के तुरत भगावय। 


कभू खाय मछरी के डल्ला। 

कुकरी तक पा जावय। 

कभू दूध दुहना मा राखे। 

चाँटत मजा उड़ावय। 


एक बार कालू हर फँसगे। 

बाँगा मुड़ी फँसाये। 

भात खात ले खाये कालू। 

निकल मुड़ी नइ पाये। 


काँय-काँय नरियावत राहय।  

कछू समझ नइ पावय।

येती ओती जेमा तेमा।

फटरस ले टकरावय। 


लालच के फाँदा मा फँसगे। 

काय करय अब कालू।   

ले डूबत हे लालच संगी।

कतको राहव चालू।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Comments

Popular posts from this blog

बाल कविता - राकेश कुमार साहू

बाल कविता-

बाल कविता *मुनु बिलाई*