गिल्ली उड़ी अगास

 गिल्ली उड़ी अगास


डंडे ने गिल्ली को मारा। 

गिल्ली उड़ी अगास। 

डंडा रहा घिरे घेरे में। 

गिल्ली चंदा पास।  


सैर सपाटा कर के आया।  

वो डंडे के पास। 

उड़ने का आनन्द बताया।

डंडा हुआ उदास। 


डंडे ने गिल्ली से बोला। 

अब तू मुझको मार। 

आसमान कैसा है देखूँ। 

जाऊँ मैं इस बार। 


नहीं उड़ा सकती डंडे को।

गिल्ली है लाचार। 

दुनिया की तो रीत यही है। 

छोटे खाते मार। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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