बोधनराम निषादराज के 5 बाल कविता

 *बाल कविता-*

(1) सरस्वती दाई


दाई    ओ     वरदान दे।

वीणा  के  सुर  तान दे।।


मँय  अड़हा  हँव शारदा,

मोला   थोकन   ज्ञान दे।


आखर  जोत  जलाय के

मोर  डहर  ओ  ध्यान दे।


जग मा नाम कमाय बर,

मोला  कुछ  पहिचान दे।


तोरे     चरन     पखारहूँ,

सेवक  ला ओ  मान दे।।

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(2) गुरु वंदना


पइँया   लागँव   हे  गुरुवर।

रद्दा   रेंगँव   अँगरी   धर।।


चरण - शरण मा आए हँव।

तुँहरे  गुन  ला   गाए  हँव।।


मँय  अड़हा  अज्ञानी  जी।

दौ  अशीष  वरदानी  जी।।


जग   के    तारनहारी  जी।

जावँव मँय  बलिहारी जी।।


पार   लगादौ   नइया  जी।

गुरुवर लाज  बचइया जी।।

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(3) हाथी दादा


पहन   पजामा   हाथी  दादा।

आमा  टोरय  मार  लबादा।।


आमा  हा   गिरगे   पानी मा।

मँगरा के  जी  रजधानी मा।।


मँगरा  धरके  सुग्घर  खावय।

हाथी दादा  बड़  चुचवावय।।


टप टप टप टप लार बहावय।

मँगरा पानी  दउड़  लगावय।।


हाथी  मँगरा  काहन  लागय।

भीख दया के माँगन लागय।।

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(4) गोलू भोलू


रोज  मुँदरहा  कुकरा  बोलय।

चिरई चुरगुन हा मुँह खोलय।।


लाली  लाली   दिखै  अगासा।

मन मा जागय सुग्घर आशा।।


दाई  उठ  के  बड़े  बिहनिया।

हउँला  बोहे  जावय पनिया।।


बाबू   गरुवा    ला   रेंगावय।

देख  बबा हा चहा  बनावय।।


गोलू   भोलू   चहा    बोर के।

खावँय बिस्कुट टोर- टोर के।।

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(5) नदी पहाड़ के खेल


आजा  पाछू   तँय  हा  बाबू।

तोरे मँय  नइ  आवँव काबू।।


नीचे   आबे    ऊपर   चघहूँ।

ऊपर   आबे   नीचे  भगहूँ।।


हाथ तोर मँय नइतो  आवँव।

आगू   पाछू   तोरे   जावँव।।


मोला  आँखी   झन  देखाबे।

ए  बाबू   तँय  हा  पछताबे।।


दउँड़-दउँड़ के तँय थक जाबे।

हाथ  कभू  नइ  मोला  पाबे।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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