चांँटी* *चौपाई* (बाल कविता)



*चांँटी* *चौपाई* (बाल कविता)


नान नान चांँटी हर आथे।

घर कुरिया मा बिला बनाथे।।

नइ बाँचय अब रोटी पीठा।

अब्बड़ खाथे ओमन मीठा।।


करिया भुरुवा लाली चांँटी।

खोदत रहिथे बारी माटी।।

हाथ गोड़ सब मा चढ़ जाथे।

ओखर चाबे बड़ अगियाथे।।


येती वोती घूमत रहिथे।

अपने भाखा का का कहिथे।।

लम्बा लम्बा लइन लगाथे।

इक दूसर के पाछू जाथे।।


मदद करे बर आगू आथे।

एक्के संँघरा जम्मो जाथे।।

ताकत रखथे येमन भारी।

सीखव चांटी ले सँगवारी।।


प्रिया देवांगन *प्रियू*

राजिम

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

बाल कविता - राकेश कुमार साहू

बाल कविता-

बाल कविता *मुनु बिलाई*