पेंड़ ला गुस्सा आतिस

  पेंड़ ला गुस्सा आतिस 


कहूँ पेंड़ ला गुस्सा आतिस, 

अड़बड़ मजा चखातिस। 

टँगिया धर जे पास फटकतिस, 

ओला बहुत ठठातिस।  


पेंड़ तरी बइठन नइ देतिस, 

डारा मार भगातिस। 

कहूँ चढ़े रुखुवा मा कोनो, 

पेल ढपेल गिरातिस।   


फुलुवा टोरन नइ दवँ कहिके, 

काँटा बड़े उगातिस। 

फर तक ला खावन नइ देतिस, 

सरहा करके गिरातिस। 


अपन जरी ला लम्बा करके, 

गोड़ फँसा हपटातिस। 

घर कुरिया ला टोर टार के, 

नानी याद दिलातिस। 


कहूँ पेंड़ ला गुस्सा आतिस, 


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार 

छत्तीसगढ़

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दिलीप वर्मा : पेंड़ लगाबो 


पेंड़ लगाना हवय जरूरी, 

चल सब ला समझाबो। 

धरती ला सिरजाये खातिर, 

जुरमिल पेंड़ लगाबो।   


सोनू धरके आबे राँपा, 

मँय लानहूँ कुदारी। 

मुनिया तँय झउहाँ धर लाबे, 

गोलू तँय हर आरी। 


कोड़ खान के गड्ढा करबो, 

खातू डार मताबो। 

पौधा ला रोपे के पहिली, 

काँटा काट के लाबो। 


जइसन दाई हमला पालिन, 

तइसन ध्यान लगाबो। 

जब पौधा हर पेंड़ बने तब, 

फल मीठा हम पाबो। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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