पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य मा बाल कविता

 पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य मा बाल कविता


 पर्यावरण बँचाबो।

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पर्यावरण बँचाना हावय।

सब ला पेंड़ लगाना हावय।।


बिरछा हा सबके हितवा ये।

 करिया बादर के मितवा ये।।


जंगल-झाड़ी जेन उजारै।

अपने पाँव कुल्हाड़ी मारै।।


रुखुवा ला सैनिक कस जानौ।

रक्षा करथे ये तय मानौ।।


  ताल,नदी गंदा होवत हे।

 जिनगी हा मंदा होवत हे।।


होगे हवा निचट जहरीला।

गड़त हवै छाती मा खीला।।


चलौ अपन कर्तव्य निभाबो।

 परिया भुँइया पेड़ लगाबो।।




 पेड़

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परथे टँगिया रोथे पेड़।

अब्बड़ हितवा होथे पेड़।।


सहि लेथे वो अत्याचार।

साधु सहीं करथे उपकार।।


हरथे वायु प्रदूषण भार।

आक्सीजन देथे भरमार।।


पंछी मन के ये घर-द्वार।

जीव-जंतु के पालनहार।।


रुख-राई बिन मरे बिहान।

छूट जही मनखे के प्रान।।


करना होही साज-सम्हाल।

 नइते आही सँउहे  काल।।




 वायु-प्रदूषण

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वायु-प्रदूषण होवत हावय।

धरती दाई रोवत हावय।।


ढरक जथे वोकर आँसू हा,

जब-जब कोनो पेड़ कटावय।


आसमान मा जहर भरे हे,

कइसे शुद्ध हवा मिल पावय।


बाइक, मोटर, कार अबड़ हे,

धुँआ उछर के ताप बढ़ावय।


पैदल चलना छोड़िस मनखे,

सइकिल मा नइ आवय-जावय।


बड़भागी वोला तो जानौ,

मेड़-पार जे पेड़ लगावय।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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