बंद होय अब पेड़ कटाई- बाल कविता*

 *बंद होय अब पेड़ कटाई- बाल कविता*


रुखराई  हा  देथे  छँइयाँ।

हरियाथे ये सगरो भुँइयाँ।।

बादर, बरखा इही बलाथे।

धरती ऊपर जल बरसाथे।।


लकड़ी-फाटा रुखुवा बनथे।

कुर्सी-टेबल  सुग्घर  तनथे।।

फुरहुर हवा, साँस सुखदाई।

मिलथे कागज, तेल, दवाई।।


रुखराई  ले  पनकै  जंगल।

सबके जीवन कर दै मंगल।।

पेड़ बिना हे मुश्किल जीवन।

खड़े रथें धरके ऑक्सीजन।।


तभो पेड़ मा चलथे आरी।

कोन बताही, का लाचारी ??

बंद होय अब पेड़ कटाई।

नइ ते नित बढ़ही करलाई।।


कन्हैया साहू 'अमित'

भाटापारा छत्तीसगढ़

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