भालू राजा

 भालू राजा


टोप मूड़ मा पहिरे भालू,

आँखी मा चश्मा दमकाय।

मटक-मटक के रेंगत हावय,

आजू-बाजू देखत जाय।।


का लेवँव मैं सोचत हावय, 

भालू राजा पहुँच बजार।

मदुरस देखय बड़ा मगन हो,

लेवय खाये बर भरमार।।


रचनाकार :- 

जगदीश हीरा साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा) बलौदाबाजार

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