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बोधनराज निषादराज के दू बाल कविता

 बोधनराज निषादराज के दू बाल कविता  *बाल कविता - ममा गाँव* चलौ ममा के  गाँव मा। बर पीपर के  छाँव मा। तीरी   पासा    खेलबो। आमा  अमली झेलबो।। ममा  ददा   दाई  सबो। बहिनी अउ भाई सबो।। सुरता  मोला   आतहे। बइला  गाड़ी  भातहे।। बाबू   गाड़ी   साजही। बइला घुँघरू बाजही।। बोधन राम निषादराज✍️ 💐💐💐💐💐💐 *बाल कविता - डॉक्टर बाबू* डॉक्टर   बाबू  आही। झट ले सुजी लगाही।। झन  तँय  रोबे  नोनी। चपके  रहिबे  पोनी।। सिरतो नहीं जनावय। थोकुन बने पिरावय।। दू ठन  दी  ही  गोली। खाबे  नोनी   भोली।। बीमारी   भग   जाही। तभे मजा  हा  आही।। बोधन राम निषादराज✍️

दू ठन कविता-चोवाराम वर्मा बादल -----------

 दू ठन कविता-चोवाराम वर्मा बादल ----------- 1 पिताजी ------------ दया-मया बड़ करने वाला। मन मा हिम्मत भरने वाला। सब ले बड़का देव पिताजी। सुख के जब्बर नेव पिताजी। अनुशासन वो सदा सिखाथे। डाँट-डपट निक राह चलाथे।  कृपा करइया संत पिताजी।   दुख पीरा के अंत पिताजी। सुग्घर करथे लालन-पालन। देथे होम अपन जोरे धन। खुद अभाव मा रहै पिताजी। खुशी रहौ सब कहै पिताजी। बखत परे दाई बन जाथे। संगी-साथी ,भाई बन जाथे। पूरा करथे चाह पिताजी।  रोज करै परवाह पिताजी।  जेला दाई कहिथे स्वामी। सचमुच मा वो अन्तर्यामी। देथे सब ला मान पिताजी। घर-दुवार के शान पिताजी। 2 पीठ चढ़ाथे --------------- घोड़ा जइसे पीठ चढ़ाथे। ड्यूटी ले आके खेलाथे।  घात मयारू आय पिताजी। मोला अब्बड़ भाय पिताजी। सेव, जलेबी, बिस्कुट लाथे। मोला अपने हाथ खवाथे। गुपचुप ,चाट खवाय पिताजी। नइतो  टुहुँ देखाय पिताजी। बोल-बोल इमला लिखवाथे। गुरुजी कस कविता रटवाथे। कठिन गणित समझाय पिताजी। तभ्भो नइ गुस्साय पिताजी। ड्रेस नवा सिलवाके देथे। पुस्तक, कापी ,पेंसिल लेथे। सइकिल मा बइठाय पिताजी। स्कूल मोला पँहुचाय-पिताजी। चोवा राम 'बादल' हथबंद...

बाल कविता-

 बाल कविता- चल संगी चल, आमा टोरे ल जाबो।  खुरहोरी कस मिठाथे,  छक्कत ले खाबो।  चल संगी चल,  आमा टोरे ल जाबो।  दिनमान जाबे त  रखवार हर कुदाथे।  एक्को ठन देवय नहीं, अकेल्ला खाथे।  चुपेचुप रात कन, टोर के हम लाबो।  चल संगी चल, आमा टोरे ल जाबो।   घुघवा के आँखी  घरखुसरा कस चाल।  चमगेदरी कस झुलबो, करबो बारा हाल।  खावत ले खा के, झोला भर लाबो।   चल संगी चल  आमा टोरे ल जाबो।  दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

बंद होय अब पेड़ कटाई- बाल कविता*

 *बंद होय अब पेड़ कटाई- बाल कविता* रुखराई  हा  देथे  छँइयाँ। हरियाथे ये सगरो भुँइयाँ।। बादर, बरखा इही बलाथे। धरती ऊपर जल बरसाथे।। लकड़ी-फाटा रुखुवा बनथे। कुर्सी-टेबल  सुग्घर  तनथे।। फुरहुर हवा, साँस सुखदाई। मिलथे कागज, तेल, दवाई।। रुखराई  ले  पनकै  जंगल। सबके जीवन कर दै मंगल।। पेड़ बिना हे मुश्किल जीवन। खड़े रथें धरके ऑक्सीजन।। तभो पेड़ मा चलथे आरी। कोन बताही, का लाचारी ?? बंद होय अब पेड़ कटाई। नइ ते नित बढ़ही करलाई।। कन्हैया साहू 'अमित' भाटापारा छत्तीसगढ़

बाल कविता-हाथी के सूँड़

 हाथी के सूँड़   लम्बा सूँड़ लमाये हाथी,  धमरस-धमरस आथे।  हाथ बरोबर सूँड़ म धरके,  डारा पाना खाथे।  इही सूँड़ हर नाक तको ये,  स्वांसा अपन चलाथे।  पानी भर के अंग-अंग मा,  मार फुहार नहाथे।  पूछ कभू झन येखर ताकत, काम बड़े कर जाथे।  बड़े-बड़े रुखराई मन ला,  सूँड़ लपेट उठाथे। खाना खाथे हाथी मनभर,  इही सूँड़ मा धरके।   मनभर प्यास बुझावत रहिथे,  खींच सूँड़ भर भरके। दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

पेड़ लगावय (शंकर छंद)

 पेड़ लगावय (शंकर छंद) चुन्नी मुन्नी सोना बबलू, होय झट तैयार। धरके रापा कुदरी झउहाँ,  जाय तरिया पार।। जुरमिल पेड़ लगावय बढ़िया,  घेर परिया मेड़। साजा सरई आमा पीपर, नीम अउ बर पेड़।। करथे सब्बो मिल सँगवारी,  आज वादा एक। हमन जतन करबो रुखवा के, काम हावय नेक।। काँटव झन ये रुख राई ला,  देत सुख के छाँव। आवव अलख जगाबो मिलके,  शहर जम्मो गाँव।। -हेमलाल साहू छंद साधक सत्र-1 ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

पर्यावरण दिवस विशेष *बाल कविता--- पेड़ लगाबो*

 पर्यावरण दिवस विशेष *बाल कविता--- पेड़ लगाबो* खेत- खार मा पेड़ लगावव । धरती ला जी सरग बनावव ।। शुद्ध  हवा  शीतल  पुरवाई । रुख- राई  हे बड़ सुखदाई ।। जुरमिल पेड़ लगावव भइया । तीपत  हावय  धरती  मइया ।। पेड़  कभू झन  काटव भाई । जिनगी  के  होही  करलाई ।। आवव सब झन पेड़ लगाबो। जन-मानस ला बात बताबो ।। रुख-राई हा मन ला भावय । भुइयाँ मा हरियाली लावय ।। *मुकेश उइके "मयारू"* छंद साधक--सत्र 16 ग्राम-चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)