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बाल गीत- पेंड़

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  बाल गीत- पेंड़  पेंड़! खड़े क्यों तुम रहते हो।  काहे लाखों दुख सहते हो।   सैर सपाटा करने जाओ।  घूम-घूम कर मजा उड़ाओ। घर-घर जा मीठे फल बाँटो।  जो चढ़ तोड़े उसको डाँटो।  गर्मी में फिर मत घबराओ। नदी ताल जा प्यास बुझाओ।  ऐरा गैरा जो भी आता।  मार कुल्हाड़ी काट गिराता।  हाथ पाँव को जरा चलाओ।   जो भी काटे उसे ठठाओ।  बाँध रखो ऐसों को जड़ से।  डर के भागे देख अँकड़ से।   कुछ भी कर सबको चमकाओ। अपना तुम अस्तित्व बचाओ। रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

चंदा- दिलीप कुमार वर्मा

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  चंदा- दिलीप कुमार वर्मा बबा बता दे चंदा ला हम ,  मामा काबर कहिथन।  ओ राहत आकाश हवय हम,  धरती काबर रहिथन।  चंदा काबर चमकत रहिथे,  इहाँ हवय अँधियारी।  ममा दिखत हे उज्जर-उज्जर,  दाई निच्चट कारी।  गोल मटोल बड़े हर दिखथे,  छोटे निच्चट पतला।  के भाई मामा मन हावय,  बबा आज तँय बतला।  मामा के घर कब हम जाबो,  कब ओ इहँचे आही।  कोन डहर ले रसता हे जे,  चंदा घर पहुँचाही।  दिन मा काबर ओ नइ आवय,  जब हम जागत रहिथन।  बबा बता दे चंदा ला हम,  मामा काबर कहिथन।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

साँप खुसर गे

 साँप खुसर गे  साँप खुसर गे कुरिया मा।  सबो भगा गेन दुरिहा मा।  सोंचन कोन बचाही जी।  बाहिर कोन भगाही जी।  बबा गोटानी धर आगे।  थात थात काहन लागे।   ददा धरे टँगिया भारी।  साँप भगाना हे जारी।   साँप बिला भीतर चल दिस।  छलिया जइसन वो छल दिस।  जाने कब वो आही जी। कइसे रात पहाही जी।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

गिल्ली उड़ी अगास

 गिल्ली उड़ी अगास डंडे ने गिल्ली को मारा।  गिल्ली उड़ी अगास।  डंडा रहा घिरे घेरे में।  गिल्ली चंदा पास।   सैर सपाटा कर के आया।   वो डंडे के पास।  उड़ने का आनन्द बताया। डंडा हुआ उदास।  डंडे ने गिल्ली से बोला।  अब तू मुझको मार।  आसमान कैसा है देखूँ।  जाऊँ मैं इस बार।  नहीं उड़ा सकती डंडे को। गिल्ली है लाचार।  दुनिया की तो रीत यही है।  छोटे खाते मार।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार

बाल गीत योग सिखाओ

 बाल गीत  योग सिखाओ  हाथी दादा जल्दी आओ।  हमको योग जरा सिखलाओ।  कैसे स्वांस हमें लेना है।  ध्यान कहाँ हमको देना है।  बज्रासन में बैठें कैसे।  सब होता है जैसे तैसे।  कुछ करके हमको दिखलाओ।  हमको योग जरा सिखलाओ।   ताड़ासन कैसे उठना है।  कुंभासन कितना झुकना है।   शिरसासन अब होगा कैसे।  देह भयंकर भैसे जैसे।  हल आसन का राज बताओ।  हाथी दादा जल्दी आओ।   रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

सोनू भाई

 सोनू भाई  सोनू भाई सुन लो बात।  आया है देखो बरसात।   बे मतलब बाहर मत जाव।  कीचड़ में ना जान झँसाव।  कहाँ मानते सोनू बात।  देखा बंद हुई बरसात।   दौड़ लगा बाहर को आय।  कीचड़ में फिर उधम मचाय।  हुआ साँथियों से फिर मेल।  सुरू हो गया उनका खेल।  उछल कूद में बिगड़ा काम।  फिसला सोनू गिरा धड़ाम।  रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

कालू

 कालू  कालू कुकुर गजब के चालू।  चुपके चुपके आवय।  रँधनी मा राखे रोटी ला।  धर के तुरत भगावय।  कभू खाय मछरी के डल्ला।  कुकरी तक पा जावय।  कभू दूध दुहना मा राखे।  चाँटत मजा उड़ावय।  एक बार कालू हर फँसगे।  बाँगा मुड़ी फँसाये।  भात खात ले खाये कालू।  निकल मुड़ी नइ पाये।  काँय-काँय नरियावत राहय।   कछू समझ नइ पावय। येती ओती जेमा तेमा। फटरस ले टकरावय।  लालच के फाँदा मा फँसगे।  काय करय अब कालू।    ले डूबत हे लालच संगी। कतको राहव चालू। रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा  बलौदाबाजार